राजस्थान के चितौड़गढ़ की वीरभूमि केवल रणबांकुरों के शौर्य और बलिदान की गाथाओं से ही नहीं, बल्कि कई रहस्यमयी कहानियों और आध्यात्मिक रहस्यों से भी जुड़ी हुई है। यहां स्थित विजय स्तम्भ, जिसे कीर्तिस्तंभ भी कहा जाता है, आज भी भारत के वैभवशाली इतिहास का प्रतीक है। परन्तु इसके गर्भ में छिपा एक ऐसा रहस्य है, जिसकी चर्चा आज तक लोगों के बीच जिज्ञासा और कौतूहल का विषय बनी हुई है। कहा जाता है कि इस स्तंभ के नीचे अरबों रुपये मूल्य का खजाना छिपा है, और उसकी रक्षा स्वयं भगवान महादेव करते हैं।
विजय स्तम्भ: ऐतिहासिक गौरव का प्रतीक
विजय स्तम्भ चितौड़गढ़ किले के भीतर स्थित है और यह स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है। इसका निर्माण 15वीं शताब्दी में महाराणा कुम्भा द्वारा मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर विजय के उपलक्ष्य में करवाया गया था। यह स्तंभ लगभग 37 मीटर ऊंचा है और इसके नौ मंज़िलों पर हिन्दू देवी-देवताओं, पौराणिक कथाओं, युद्धों और शौर्यगाथाओं की सुंदर नक्काशी की गई है।
लेकिन यही स्तंभ सिर्फ एक स्थापत्य कृति नहीं...
स्थानीय किंवदंतियों और प्राचीन कथाओं के अनुसार, इस स्तंभ के नीचे एक गुप्त तहखाना है, जिसमें एक खजाना छिपा हुआ है। यह खजाना राजाओं की युद्ध विजय के दौरान एकत्रित किया गया था, जिसमें सोना, चांदी, बहुमूल्य रत्न और दुर्लभ वस्तुएं शामिल हैं। परंतु यह खजाना केवल भौतिक संपदा नहीं है, बल्कि इसे अलौकिक शक्तियों द्वारा संरक्षित बताया गया है।
स्वयं महादेव करते हैं खजाने की रक्षा
यह मान्यता है कि इस खजाने की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते हैं। विजय स्तम्भ के पास स्थित एक प्राचीन शिवलिंग को ‘रक्षक रूप में शिव’ के नाम से पूजा जाता है। ग्रामीणों और साधुओं का कहना है कि जब भी किसी ने इस खजाने को पाने की कोशिश की, उसे असामान्य अनुभव हुए – जैसे तेज़ गूंजती हुई घंटियों की आवाज़ें, अदृश्य शक्तियों का स्पर्श, अथवा रहस्यमय बीमारियाँ।इतना ही नहीं, कई बार रात के समय विजय स्तम्भ के आसपास धूप-दीप की गंध और शिव मंत्रों की गूंज सुनाई देती है, जबकि कोई वहाँ मौजूद नहीं होता। पुरातत्व विभाग के कई अधिकारियों ने भी स्वीकार किया है कि रात के समय स्तंभ के नज़दीक अजीबोगरीब घटनाएं होती हैं, जिस कारण वहां रात में आमजन का जाना वर्जित है।
आध्यात्म और रहस्य का संगम
चितौड़गढ़ का यह विजय स्तम्भ केवल एक ऐतिहासिक धरोहर नहीं, बल्कि धार्मिक आस्था और रहस्यवाद का केंद्र भी बन चुका है। भगवान शिव को विनाश और रक्षा दोनों के देवता माना जाता है। और जब इस स्तंभ में छिपे खजाने की बात होती है, तो शिव की भूमिका रक्षक के रूप में सामने आती है।कई साधु और तपस्वी यहां वर्षों से ध्यानस्थ हैं और उनका कहना है कि इस खजाने को छूने के लिए केवल वही व्यक्ति योग्य है जो निर्मल हृदय, निष्कलंक आत्मा और ईश्वरीय आज्ञा से प्रेरित हो। अन्यथा, शिव की तीसरी आंख का क्रोध किसी को भी भस्म कर सकता है।
क्या कभी खुलेगा यह रहस्य?
इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं ने कई बार इस स्थान की जांच करने की कोशिश की है, लेकिन उन्हें कभी भी कोई ठोस सुराग नहीं मिला। कुछ का मानना है कि खजाने की कहानी केवल लोककथा है, तो कुछ मानते हैं कि यह सच है, बस समय आने पर यह सत्य बाहर आएगा।भारत में ऐसे कई स्थल हैं जहाँ धार्मिक मान्यताएं और रहस्यमयी कहानियाँ एक साथ चलती हैं। विजय स्तम्भ उनमें सबसे प्रमुख है। यह संरचना न सिर्फ हमारी सांस्कृतिक विरासत है, बल्कि एक जीवंत रहस्य भी है जो आज भी सुलझाया नहीं जा सका।
श्रद्धा, रहस्य और चेतावनी
यह सत्य हो या आस्था, परंतु इतना तय है कि विजय स्तम्भ आज भी लोगों के दिलों में एक गूढ़ आकर्षण बनाए हुए है। कोई इसे शिव का चमत्कार मानता है, तो कोई भूतकाल की छिपी दौलत। लेकिन एक बात सब मानते हैं – यदि कोई इस रहस्य से छेड़छाड़ करता है, तो उसकी सुरक्षा की गारंटी कोई नहीं दे सकता।
निष्कर्ष
चितौड़गढ़ का विजय स्तम्भ सिर्फ एक स्थापत्य अजूबा नहीं, बल्कि एक जीवंत कथा, एक रहस्यमयी संरचना और आध्यात्मिक चेतना का केंद्र है। अरबों के खजाने की कहानी भले ही प्रमाणित न हो, लेकिन लोगों की आस्था और शिव की महिमा आज भी इस स्तंभ के चारों ओर अदृश्य सुरक्षा कवच की तरह फैली हुई है।जब तक शिव की छाया इस स्तंभ पर बनी रहेगी, तब तक शायद यह रहस्य रहस्य ही बना रहेगा।
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