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पसीना ज़्यादा आता है तो क्या करें, कहां नहीं लगाना चाहिए डिओडोरेंट?

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Getty Images पसीना आना सामान्य बात है लेकिन इसकी बदबू से परेशानी होती है.

क्या आपको कभी लगता है कि आपके शरीर से बदबू आ रही है, ख़ासकर दिनभर बाहर रहने के बाद या किसी से मिलने से पहले?

सोशल मीडिया इस चिंता को और बढ़ा देता है, क्योंकि वहां बार-बार 'फ्रेश' बने रहने की चर्चा होती रहती है.

सोशल मीडिया पर तरह-तरह के वीडियो देखे जा सकते हैं. कहीं इन्फ्लुएंसर्स पूरे शरीर पर डिओडोरेंट लगाते दिखते हैं, तो कहीं लोग बसों और ट्रेनों में 'बदबूदार' यात्रियों की शिकायत करते नज़र आते हैं.

लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि पसीना आना बिल्कुल सामान्य बात है. इसका मतलब यह नहीं कि हाइजीन खराब है. यह तो शरीर की एक प्राकृतिक प्रक्रिया है.

यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ़ ब्रिस्टल में एनाटॉमी की प्रोफे़सर मिशेल स्पीयर कहती हैं, "पसीना आना बिल्कुल सामान्य और ज़रूरी है."

अक्सर लोग गर्मी, कसरत या टेंशन में पसीना बहाते हैं. यही पसीना शरीर का तापमान संतुलित रखने में मदद करता है.

पसीने से जुड़े आम सवालों के जवाब और दिनभर ताज़ा रहने के आसान तरीकों को लेकर हमने विशेषज्ञों से बात की.

पसीने से बदबू क्यों आती है? image Bloomberg via Getty Images भीड़ वाली जगहों पर बदबू की चिंता और बढ़ जाती है.

जब शरीर का तापमान बढ़ता है तो पसीना निकलता है. इसमें पानी और नमक होता है. यह पसीना सूखकर गर्मी को बाहर निकालता है और शरीर को ठंडा करता है.

लेकिन ध्यान रखने वाली बात यह है कि बदबू सीधे पसीने से नहीं आती.

प्रोफेसर स्पीयर बताती हैं कि हमारे शरीर में 20 से 40 लाख तक स्वेट ग्लैंड्स होती हैं. ये दो तरह का पसीना बनाती हैं-एक पानी जैसा, जो शरीर को ठंडा करता है, और दूसरा जिसमें फैट ज़्यादा होता है.

फैट वाला पसीना आमतौर पर बगल और जांघों के पास निकलता है. जब बैक्टीरिया इसे तोड़ते हैं तो बदबू आने लगती है.

पसीना आना शरीर के लिए अच्छा है, लेकिन हर कोई साफ़-सुथरा और आत्मविश्वास से भरपूर महसूस करना चाहता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि पसीना रोकने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, बल्कि इसे मैनेज करना सीखना चाहिए, ताकि रोज़मर्रा की ज़िंदगी आसान हो सके.

क्या दिनभर तरोताज़ा रहा जा सकता है? image AFP via Getty Images साफ़-सफ़ाई के लिए रोज़ नहाने की सलाह दी जाती है.

साबुन और पानी से नहाना पसीना और बदबू से बचने का सबसे आसान तरीका है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि कितनी बार नहाना ज़रूरी है?

कुछ लोग रोज़ नहाने की सलाह देते हैं, जबकि कुछ का मानना है कि हफ़्ते में तीन बार नहाना भी काफ़ी है.

प्रोफेसर स्पीयर कहती हैं कि बगल, जांघों का ऊपर वाला हिस्सा और पैरों को अच्छे से धोना ज़रूरी है.

उनका कहना है, "शॉवर लेते समय पानी पूरे शरीर पर तो चला जाता है, लेकिन लोग अक्सर पैरों को धोना भूल जाते हैं. पैरों को भी अच्छी तरह साफ़ करना चाहिए."

हमारे कपड़े भी पसीना और बदबू पर असर डालते हैं.

कॉटन और लिनन जैसे कपड़े पसीना सोखकर शरीर से दूर कर देते हैं, जिससे राहत मिलती है. लेकिन सिंथेटिक कपड़े पसीना रोक लेते हैं, जिससे गर्मी और परेशानी बढ़ सकती है.

डिओडोरेंट और एंटीपर्सपिरेंट भी मदद करते हैं. डिओडोरेंट में अल्कोहल होता है, जो त्वचा को थोड़ा अम्लीय बना देता है. इससे बैक्टीरिया कम पनपते हैं और खुशबू बदबू को ढक लेती है.

एंटीपर्सपिरेंट में एल्युमिनियम साल्ट्स होते हैं, जो स्वेट ग्लैंड्स को ब्लॉक कर देते हैं. इससे पसीना कम निकलता है.

विशेषज्ञों की सलाह है कि एंटीपर्सपिरेंट रात को लगाना बेहतर होता है और सुबह उठकर इसे धो लेना चाहिए. रात में स्वेट ग्लैंड्स कम सक्रिय रहती हैं, इसलिए एल्युमिनियम आसानी से असर करता है. यह धीरे-धीरे जमा होता है और इसका असर कुछ समय बाद दिखाई देता है.

क्या एंटीपर्सपिरेंट्स नुक़सान पहुंचा सकते हैं?

काफी समय से एंटीपर्सपिरेंट्स को लेकर ये संदेह जताया जाता रहा है कि इससे ब्रेस्ट कैंसर और अल्ज़ाइमर जैसी बीमारियां हो सकती हैं.

लेकिन डॉ. नोरा जाफ़र कहती हैं, "अब तक मिले सबूत बताते हैं कि ये सुरक्षित हैं. कोई भी अच्छी स्टडी यह साबित नहीं करती कि एंटीपर्सपिरेंट से कैंसर होता है."

वह समझाती हैं कि एल्युमिनियम साल्ट्स का असर केवल त्वचा पर थोड़े समय के लिए होता है. जो परत ये बनाते हैं, वो बाद में त्वचा के साथ निकल जाते हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि इन प्रोडक्ट्स का गलत इस्तेमाल करने से स्किन की दिक्कतें हो सकती हैं.

प्रोफेसर स्पीयर बताती हैं, "अगर कोई प्रोडक्ट कहे कि वह 72 घंटे या 48 घंटे तक असर करेगा, और कोई इंसान यह सोचकर न नहाए कि एंटीपर्सपिरेंट काम करता रहेगा, तो इससे स्किन में ब्लॉकेज और परेशानी हो सकती है."

जब पसीना और स्किन की डेड सेल जमा हो जाती हैं तो स्वेट ग्लैंड्स बंद हो सकती हैं और जलन की दिक्कत हो सकती है.

स्किन एक्सपर्ट्स सलाह देते हैं कि एल्युमिनियम वाले प्रोडक्ट्स तभी लगाएं जब बगल पूरी तरह सूखी हो.

स्किन गीली होने पर एल्युमिनियम क्लोराइड पानी से मिलकर एसिड बना सकता है, जिससे जलन हो सकती है.

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क्या नैचुरल डिओडोरेंट्स काम करते हैं? image Getty Images नेचुरल डिओडोरेंट्स अब उन लोगों में ज़्यादा पसंद किए जा रहे हैं जो केमिकल वाले प्रोडक्ट्स नहीं इस्तेमाल करना चाहते.

इन दिनों नैचुरल डिओडोरेंट्स का इस्तेमाल बढ़ रहा है. इन्हें खास तौर पर उन लोगों के लिए बनाया जाता है, जो एल्युमिनियम या आर्टिफिशियल खुशबू से बचना चाहते हैं.

इन डिओडोरेंट्स में आम तौर पर नैचुरल एंटी-बैक्टीरियल तत्व या पौधों से बने तेल होते हैं, जो बदबू को कम करते हैं. इसके अलावा, चावल या टैपिओका स्टार्च जैसी चीज़ें पसीना सोख लेती हैं.

डॉ. जाफ़र बताती हैं, "ये हल्के होते हैं क्योंकि ये पसीने की ग्रंथियों को बंद नहीं करते, सिर्फ बदबू पर असर डालते हैं. लेकिन 'नैचुरल' का मतलब ये नहीं कि इससे कोई दिक़्कत नहीं होगी. एसेंशियल ऑयल्स या बेकिंग सोडा जैसी चीज़ें संवेदनशील स्किन पर रैश ला सकती हैं."

इनका असर हर इंसान में अलग हो सकता है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी स्किन पर कौन-से बैक्टीरिया हैं और डिओडोरेंट किस सामग्री से बना है?

अगर आपको बहुत पसीना आता है तो ये डिओडोरेंट उतने असरदार नहीं होंगे. लेकिन अगर आप एल्युमिनियम से बचना चाहते हैं तो ये अच्छा विकल्प हो सकते हैं.

क्या डिओडोरेंट पूरे शरीर पर इस्तेमाल कर सकते हैं? image Getty Images फुल-बॉडी डिओडोरेंट्स को ऐसे बेचा जा रहा है कि इन्हें लगाने के बाद कई घंटे तक बदबू कंट्रोल में रहती है.

अब लोग यह सोचने लगे हैं कि डिओडोरेंट या एंटीपर्सपिरेंट कौन-सा लें और इसे शरीर के किन हिस्सों पर लगाएं?

यूके और अमेरिका में ऐसे नए डिओडोरेंट बिक रहे हैं जो दावा करते हैं कि इन्हें शरीर के हर हिस्से यानी निजी अंगों पर भी लगाया जा सकता है.

ये प्रोडक्ट्स दावा करते हैं कि नहाने के बाद भी लंबे समय तक ताज़गी बनी रहेगी, और कुछ तो कहते हैं कि 72 घंटे तक बदबू नहीं आएगी.

लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि पूरे शरीर पर डिओडोरेंट लगाने की ज़रूरत नहीं है, खासकर निजी अंगों पर तो बिलकुल भी नहीं.

डॉ. जाफ़र चेतावनी देती हैं, "वुल्वा और ग्रोइन बहुत संवेदनशील हिस्से हैं. वहां डिओडोरेंट लगाने से जलन, एलर्जी और प्राकृतिक संतुलन बिगड़ सकता है."

उनका सुझाव है, "हल्के साबुन या सिर्फ पानी से धोना ही काफी है."

कब पसीना आना चिंता का विषय है?

कुछ लोग हाइपरहाइड्रोसिस नाम की परेशानी से जूझते हैं. इसमें शरीर को ठंडा रखने से कहीं ज़्यादा पसीना आता है.

इंटरनेशनल हाइपरहाइड्रोसिस सोसाइटी के मुताबिक, इस स्थिति में कुछ स्वेट ग्लैंड्स ज़रूरत से ज़्यादा सक्रिय हो जाती हैं और बहुत पसीना निकालती हैं.

डॉक्टर बताते हैं कि कई बार यह किसी दूसरी बीमारी का लक्षण भी हो सकता है-जैसे हार्मोन बदलना, थायरॉयड की समस्या, इंफेक्शन या मेटाबोलिक गड़बड़ी.

इलाज के तौर पर स्ट्रॉन्ग एंटीपर्सपिरेंट्स दिए जाते हैं जिनमें ज़्यादा एल्युमिनियम साल्ट्स होते हैं. इससे पसीना कम होता है.

कुछ मामलों में बोटॉक्स इंजेक्शन भी दिए जाते हैं और बहुत गंभीर केस में सर्जरी कर स्वेट ग्लैंड्स हटाई जा सकती हैं.

प्रोफेसर स्पीयर कहती हैं, "अगर आपको लगता है कि आपको बहुत पसीना आता है तो शर्मिंदा मत हों. डॉक्टर से मदद लें."

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