मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर के कपड़ा बाज़ार में मुस्लिम सेल्समैन और व्यापारियों को काम करने से मना कर दिया गया है.
यह कोई प्रशासनिक या सरकारी आदेश नहीं है बल्कि इंदौर-4 विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक मालिनी गौड़ के बेटे एकलव्य सिंह गौड़ का 'फरमान' है.
इस मामले पर बीबीसी ने एकलव्य गौड़ से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया.
शीतलामाता कपड़ा बाज़ार के अध्यक्ष हेमा पंजवानी ने बताया कि 25 अगस्त को बंद कमरे की एक बैठक में एकलव्य सिंह गौड़ ने व्यापारियों के प्रतिनिधियों से बात की थी. इसी बैठक में शीतलामाता कपड़ा बाज़ार के व्यापारियों के प्रतिनिधियों के लिए यह फ़रमान जारी किया.
इसके बाद एकलव्य सिंह गौड़ ने स्थानीय मीडिया को कई बार दिए अपने बयान में कहा, "मेरे पास कई बार लव जिहाद की शिकायतें आ चुकी हैं. यह षडयंत्र अब कोई कल्पना या मनगढ़ंत बात नहीं है. हमारे कपड़ा बाज़ार में ज़्यादातर महिलाएं आती हैं और मुस्लिम सेल्समैन उन्हें लव जिहाद में फंसा लेते हैं."
हालांकि एकलव्य सिंह गौड़ भले ही निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं हैं, लेकिन बाज़ार में उनकी बातों का खूब वजन है.
शीतलामाता कपड़ा बाज़ार के अध्यक्ष हेमा पंजवानी ने बीबीसी से कहा, "हमारे एकलव्य भैया का आदेश था कि बाज़ार से मुस्लिम सेल्समैन और व्यापारियों को बाहर निकला जाए. उनके पास कई बार लोग लव जिहाद के मुद्दे को लेकर गए थे."
बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष एजाज़ अंसारी ने कहा कि वो फिलहाल "टूर पर हैं" और लौटने के बाद इस मामले को "डिटेल में समझेंगे और फिर उचित कदम उठाएंगे".

इंदौर पुलिस के अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त राजेश दंडोतिया ने बीबीसी से कहा कि अब तक उनके पास ऐसी कोई शिकायत नहीं आई है.
वहीं, विधायक मालिनी गौड़, मेयर पुष्यमित्र भार्गव, इंदौर बीजेपी अध्यक्ष सुमित शर्मा और वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय ने इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
इस बीच "जिहादी मानसिकता से छुटकारा दिलाने के लिए धन्यवाद" के पोस्टर इंदौर के बाज़ार में कुछ और हक़ीकत बयां कर रहे हैं.
लगभग 200 मुस्लिम कर्मचारियों की रोज़ी रोटी का संकटबीबीसी की टीम जब इस मामले के तह तक जाने के लिए 25 सितंबर को इंदौर पहुंची तो कई मुस्लिम सेल्समैन नौकरी से निकाले जा चुके थे और कई मुस्लिम व्यापारी अपनी दुकानें खाली कर चुके थे या करने वाले थे.
मुसलमानों को बाज़ार से निकाले जाने के फ़रमान के बाद नौकरी गंवा चुके सलमान ने (बदला हुआ नाम) बीबीसी से कहा, "हमारी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है. हमारी दिक्कतें ये हैं कि बच्चों की स्कूल की फीस भरनी है, घर का राशन खरीदना है, लोन चुकाना है. और अगर हमें काम ही नहीं करने दिया जाएगा तो हम अपने परिवार का भरण पोषण कैसे करेंगे?"
दरवाज़े की ओट पर खड़ी पत्नी की ओर देखते हुए सलमान कुछ देर रुक जाते हैं.
अपनी हिम्मत और आंसू दोनों को बांधते हुए सलमान कहते हैं, "कम से कम सुकून से कमाने और खाने तो दिया जाए. ये तो हमारा संवैधानिक अधिकार है".
सलमान जैसे ही कई सेल्समैनसलीम (बदला हुआ नाम) जो इस बाज़ार में लंबे समय से काम कर रहे थे, वो कहते हैं, "मैंने लगभग 16 साल इस बाज़ार को दिए हैं. मैं बच्चे से जवान यहीं हुआ हूं और अब दो बच्चों का बाप हूं. अब 15-20 दिन से बेरोज़गार हूं. कहां जाऊं? क्या करूं-समझ नहीं आता".
भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक देशदीप सक्सेना कहते हैं, "इस पूरे प्रकरण से यह सवाल उठता है कि आखिर सरकार क्या करना चाहती है? क्योंकि इस मामले में संवैधानिक मूल्यों का ह्रास और अधिकारों का हनन स्पष्ट है."
"जीवन जीने का अधिकार, नौकरी या काम करने का अधिकार– एक समुदाय के लोगों से उनके धर्म के आधार पर छीना जा रहा है. समता, समानता और बंधुत्व जैसे मूल्यों का ह्रास और प्रशासन से लेकर शासन और वरिष्ठ नेताओं की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है."
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आदिल और सुखविंदर पार्टनरशिप में दुकान चलाते हैं. एकलव्य सिंह गौड़ के फ़रमान के बाद आदिल और सुखविंदर को भी दुकान खाली करनी पड़ी. जब हम उनकी दुकान पर पहुंचे तो वहां काम करनेवाले छह सेल्समैन सारा सामान पैक कर रहे थे.
बीबीसी से बात करते हुए सुखविंदर कहते हैं, "मैं हिन्दू हूं और मेरा पार्टनर मुस्लिम है. हम 20 साल से साथ काम कर रहे हैं. एकलव्य सिंह गौड़ ने लव जिहाद का आरोप लगाया, लेकिन हम पूछते हैं कि अब तक ऐसा एक भी मामला सामने आया है क्या?"
आदिल कहते हैं, "हमारे कारण हमारे पार्टनर की भी रोज़ी रोटी छिन गई. अब हम क्या करेंगे?"
सुखविंदर ने आदिल के कंधे पर हाथ रखा और हमसे पलटकर कहा, "इस देश में क़ानून है, सरकार- प्रशासन है. एकलव्य सिंह गौड़ जी उनसे आगे चलकर अपना क़ानून तो नहीं चला सकते हैं न ?"
बाज़ार के चुने हुए अध्यक्ष क्या बोले?
इंदौर कपड़ा व्यापारी संघ के अध्यक्ष हेमा पंजवानी कहते हैं, "हिंद रक्षा संगठन के हमारे भैया एकलव्य सिंह गौड़ का आदेश था, हम उसका पालन कर रहे हैं. उन्होंने हर दुकानदार को बुलाकर समझाया कि बाज़ार में जो चल रहा है (लव जिहाद), उसको तुरंत बंद किया जाए. बहुत सारे मुस्लिम लोग अब यहां से जा चुके हैं."
जब उनसे पूछा गया कि क्या किसी मुस्लिम कर्मचारी या दुकानदार के ख़िलाफ़ कोई औपचारिक शिकायत आई है, तो उनका जवाब था, "मेरे पास इसकी कोई जानकारी नहीं है."
नौकरी से निकाले जा चुके एक मुस्लिम सेल्समैन ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "एकलव्य सिंह गौड़ हिंदू व्यापारियों पर दबाव बना रहे हैं ताकि खुद को हिंदूवादी नेता साबित कर सकें, चाहे इसमें मुस्लिमों और उनके परिवारों की ज़िंदगी बर्बाद ही क्यों न हो."
प्रशासन और भाजपा नेताओं की चुप्पी क्या इशारा करती है?इंदौर पुलिस के अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त राजेश दंडोतिया कहते हैं, "अब तक ऐसा कोई मामला हमारे पास नहीं आया है. अगर कोई शिकायत आएगी, तो हम उचित वैधानिक कार्रवाई करेंगे."
हालांकि 15 सितंबर को मुस्लिम सेल्समैन और व्यापारियों ने मिलकर इंदौर के संभागायुक्त के नाम शिकायती ज्ञापन सौंपा था. इसके बावजूद पुलिस का यह बयान कि उनके पास कोई शिकायत लेकर नहीं आया, कई सवाल खड़े करता है.
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि प्रदेश में सांप्रदायिकता बढ़ रही है और मुसलमानों को काम से रोकना क़ानूनन अपराध है, जिस पर कार्रवाई होनी चाहिए. वहीं, भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल ने इसे लेकर टिप्पणी से बचते हुए कहा, "पार्टी सबका साथ, सबका विकास के लक्ष्य पर काम कर रही है".
इंदौर में मुस्लिम समुदाय के कर्मचारियों के बहिष्कार के फ़रमान पर अग्रवाल कहते हैं, "हम यह तय करेंगे कि किस मामले पर पार्टी अपना बयान या मत रखती है."
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "कोई भी हिन्दूवादी एजेंडे से इतर नहीं दिखना चाहता है. यह कुछ ऐसा ही है कि अगर कोई सांप-सांप चिल्ला दे तो सब लोग वही चिल्लाएंगे, भले ही उन्हें ये मालूम हो कि सांप नहीं रस्सी पड़ी है. क्योंकि नेताओं में कट्टर राजनीति से अलग हटकर दिखने की हिम्मत नहीं बची है."
जब हर तरफ़ से मुस्लिम समुदाय के कर्मचारियों के लिए जीवन यापन का संकट गहराता जा रहा है, ऐसे में कुछ हिन्दू व्यापारी इस फ़रमान का विरोध भी कर रहे हैं.
विरोध की आवाज़ेंसुरेंद्र जैन दशकों से मुसलमान कर्मचारियों के साथ काम कर रहे हैं.
वो कहते हैं, "हम लोग सारा काम मुसलमानों के साथ करते आ रहे हैं. मेरे यहां दो मुसलमान काम करते हैं. साड़ी के फॉल-पिको से लेकर एम्ब्रॉयडरी तक का काम मुस्लिम भाई ही करते हैं. मेरी दुकान में तो ज़्यादातर मेरी पत्नी ही बैठती हैं. मेरे यहां के दोनों सेल्समैन से हमें कोई शिकायत नहीं है. हमारे यहां जो महिलाएं खरीददारी करने आती हैं, उन्हें कोई शिकायत नहीं है, तो मैं कैसे किसी को उसके धर्म के आधार पर निकाल दूं?"
उनकी पत्नी राजकुमारी जैन कहती हैं, "20 साल से ये लोग हमारे साथ काम कर रहे हैं लेकिन कोई शिकायत नहीं आई. हमारे लिए तो ये बच्चे जैसे हैं."
शीतलामाता मार्केट में दशकों से हिंदू और मुसलमान साथ-साथ व्यापार करते आए हैं. लेकिन अब माहौल बदल रहा है. स्थानीय नेताओं के बयानों और वरिष्ठ भाजपा नेताओं की चुप्पी ने इस तनाव को और गहरा किया है.
फिलहाल, मुसलमान सेल्समैन और व्यापारियों के लिए रोज़गार खोने का डर और सामाजिक असुरक्षा का अनुभव शहर के माहौल को बदल रहा है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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