हाल ही में सुर्खियों में आईं दिल्ली पुलिस की कॉन्स्टेबल सोनिका यादव कहती हैं, "भारत में प्रेग्नेंसी को एक बीमारी माना जाता है, लेकिन मैं इस टैबू को तोड़ना चाहती थी."
आंध्र प्रदेश में ऑल इंडिया पुलिस वेटलिफ़्टिंग क्लस्टर 2025-26 का एक वीडियो वायरल हुआ है. इसमें सात महीने प्रेग्नेंट सोनिका यादव 145 किलोग्राम भार उठाकर 84 किलोग्राम कैटेगरी में ब्रॉन्ज मेडल जीतती हैं.
इस दौरान जब वेटलिफ़्टिंग का बारबेल ज़मीन पर गिरता है, तब सोनिका के पति उसे उठाने के लिए मदद के लिए दौड़ते हुए आते हैं और तभी कई लोगों को पता चलता है कि सोनिका प्रेग्नेंट हैं.
सात महीने की प्रेग्नेंसी के बावजूद 145 किलोग्राम वजन उठाने का सोनिका का वीडियो जब वायरल हुआ तो लोगों ने उनकी सराहना की. दूसरी तरफ़ यह बहस शुरू हो गई कि वह अपनी प्रेग्नेंसी को ख़तरे में डाल रही हैं.
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सोशल मीडिया पर कई लोगों ने सोनिका के इस फ़ैसले पर सवाल उठाया. उनके इस फ़ैसले को 'रिस्की' और 'लापरवाही' वाला बताते हुए कुछ लोगों ने यहां तक कहा कि वो अपने 'अजन्मे संतान को ख़तरे' में डाल रही हैं.
वहीं सोनिका कहती हैं कि उन्हें अच्छी तरह से पता था कि वो क्या कर रही थीं.
वह कहती हैं, "मैं पिछले दो-तीन सालों से पावरलिफ़्टिंग कर रही हूं. इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने से पहले मैंने अपने डॉक्टर से सलाह ली थी. कई लोगों ने ऐसी टिप्पणियां भी कीं कि मैं अपने अजन्मे बच्चे से प्यार नहीं करती. यह सच नहीं है. मैं अपने गर्भ में पल रहे बच्चे से उतना ही प्यार करती हूं जितना अपने बड़े बेटे से."
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सोनिका ने अपनी फ़िटनेस का सफ़र उनका वीडियो वायरल होने से काफी पहले साल 2022 में शुरू किया था.
इस बारे में वह कहती हैं, "तब मैं काफी ओवरवेट थी और इस वजह से मुझे बहुत सी लाइफ़स्टाइल बीमारियों की दिक्कत थी. इससे निपटने के लिए मैंने जिम जाना शुरू किया."
जो काम कसरत के तौर पर शुरू हुआ, वह जल्द ही एक अनुशासन वाली गतिविधि में बदल गया.
सोनिका कहती हैं, "मुझे मेरे पति ने सलाह दी कि अगर मैं इतना वेट लिफ़्ट कर रही हूं तो किसी प्रतियोगिता में हिस्सा लूं. 2023 की जनवरी में हम लोगों ने फ़ैसला किया कि मैं पावरलिफ़्टिंग में हिस्सा लिया करूंगी."
उस साल अगस्त में सोनिका यादव ने पहली बार स्टेट डेडलिफ़्ट कॉम्पटिशन (ताकत की प्रतियोगिता, जिसमें एक भारी बारबेल को फर्श से उठाते हुए साथ खड़े होना होता है) में हिस्सा लिया और उन्होंने गोल्ड मेडल जीता.
सोनिका ने जब पुलिस वेट लिफ़्टिंग क्लस्टर 2025-26 के लिए तैयारी शुरू की, तब जल्द ही उन्हें पता चला कि वह प्रेग्नेंट हैं.
वह कहती हैं, "एक पल के लिए, मुझे लगा कि शायद ये गड़बड़ हुई है और अब मेरा गेम ख़राब हो जाएगा."
लेकिन रुकने के बजाए, उन्होंने अपने डॉक्टर से सलाह ली. सोनिका कहती हैं, "मैंने उन्हें बताया कि मैं वेट लिफ़्ट करती हूं और पिछले दो साल से मैं नेशनल लेवल पर खेल रही हूं, और मैं इस साल भी खेलना चाहती हूं, मैं ब्रेक नहीं करना चाहती."
उनकी डॉक्टर ने उन्हें एक सधा हुआ जवाब दिया, "अगर आपका शरीर इसकी मंज़ूरी देता है, तो मैं भी इसकी मंज़ूरी दे दूंगी, लेकिन आपको अपने शरीर की सीमा पार नहीं करनी होगी."
इस सलाह से सोनिका को गाइडेंस मिला. उन्होंने सावधानी से ट्रेनिंग ली, अपने सेशन्स पर नज़र रखी और अपने डॉक्टर के संपर्क में रहीं.
वह कहती हैं, "मैं ऐसा कर सकी, शायद इसका कारण रहा है मेरे पिछले दो साल का सफ़र. मैंने प्रेग्नेंसी के दौरान वेटलिफ़्टिंग नहीं शुरू की. मेरी बॉडी पिछले दो-तीन सालों से इस गेम को काफी अच्छी तरीके से हैंडल कर रही है. मैं जो कर रही थी, मैंने वही जारी रखा."
उनके पति हमेशा उनके साथ रहे, उनकी देखभाल की, उनका साथ दिया और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की. वह कहती हैं, "वह मेरी सबसे बड़ी ताकत रहे हैं."
एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं?यहां ये गौर करने वाली बात है कि सोनिका यादव लगातार अपने डॉक्टर से सलाह लेती रहीं, उनके संपर्क में रहीं.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि हर प्रेग्नेंसी अपने आप में अलग होती है, इसलिए हर प्रेग्नेंट महिला को ऐसा करने की सलाह नहीं दी जा सकती है.
सोनिका यादव ने जो किया, वह हर कोई न कर सकता है और ना ही करना चाहिए. मुंबई के क्लाउडनाइन हॉस्पिटल के वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. निखिल दातार कहते हैं कि यह हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग होता है.
वह कहते हैं, "कुछ मामलों में, उचित मेडिकल सलाह और ट्रेनिंग के साथ महिलाएं सुरक्षित तरीके से स्ट्रेंथ एक्सरसाइज़ जारी रख सकती हैं."
लेकिन वह चेतावनी देते हैं कि सोनिका का मामला ख़ास है.
"वह एक एथलीट हैं जिन्होंने सालों तक ट्रेनिंग ली है. ज़्यादातर प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए इतना भारी वज़न उठाना सुरक्षित नहीं होता."
इसका मतलब यह नहीं है कि प्रेग्नेंट महिलाओं को हिलना-डुलना भी बंद कर देना चाहिए.
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डॉ. दातार कहते हैं, "हल्की एक्सरसाइज़ न सिर्फ़ सुरक्षित है, बल्कि मददगार भी है. हमें यह सोचना बंद कर देना चाहिए कि गर्भावस्था का मतलब पूरी तरह आराम करना है."
वह हल्की-फुल्की एक्टिविटीज़ जैसे टहलना, योग या निगरानी में होने वाले वर्कआउट की सलाह देते हैं.
इन एक्टिविटीज़ से ब्लड फ़्लो में सुधार हो सकता है, वज़न नियंत्रित रखने में मदद मिल सकती है और शरीर को बच्चे के जन्म के लिए तैयार करने में मदद मिल सकती है.
डॉ. निखिल दातार जाने-माने पेशेंट राइट्स एक्टिविस्ट हैं और उन्होंने कई अदालतों में महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी कई याचिकाएं दायर की हैं.
वह कहते हैं, "जोखिम सिर्फ़ इस बात का नहीं है कि कितना वज़न उठाया गया है. यह महिला के फ़िटनेस लेवल, उसके शरीर की प्रतिक्रिया और उचित मेडिकल गाइडेंस का मामला है. इसमें डॉक्टरों, ट्रेनरों और एथलीटों को मिलकर काम करने की ज़रूरत होती है."
डॉ. दातार ने जो बातें कही हैं, स्पोर्ट्स मेडिसिन से जुड़ी रिसर्च में भी यही बात है. प्रेग्नेंसी के दौरान मॉडरेट एक्सरसाइज़ से सहने की शक्ति बढ़ती है, हार्ट हेल्थ और मानसिक सेहत में भी सुधार होता है.
हालांकि, हाई इंटेंसिटी ट्रेनिंग और भारी वजन उठाना सिर्फ़ मेडिकल देखरेख में ही सुरक्षित है.
गेटोरेड स्पोर्ट्स साइंस इंस्टीट्यूट के एक ग्लोबल रिव्यू में कहा गया है, "प्रेग्नेंट एथलीट्स हाई इंटेंसिटी ट्रेनिंग को लेकर कई गाइडलाइन्स में बताई गई इंटेंसिटी से ज़्यादा इंटेंसिटी वाली ट्रेनिंग ले सकती हैं, लेकिन इसमें शर्त ये है कि उनका प्रोग्राम लचीला हो और संबंधित एक्सपर्ट्स की टीम गाइड कर रही हो."
डॉ. दातार का कहना है कि किसी भी प्रेग्नेंट महिला को गर्भावस्था के दौरान या अचानक भारी व्यायाम नहीं करना चाहिए.
यहां तक कि सोनिका ख़ुद भी दूसरों को उनकी देखा-देखी ऐसा करने से मना करती हैं.
वह कहती हैं, "जिस किसी ने भी पहले कभी ट्रेनिंग नहीं ली हो, उन्हें मेरी कहानी देखकर प्रेग्नेंसी के दौरान वज़न उठाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. मेरा शरीर सालों से इसकी आदत डाल चुका था, और मैंने यह सब अपने डॉक्टर की सलाह के बाद ही किया."
जब भी उनसे इसके जोखिमों के बारे में पूछा जाता है, वह यही बात दोहराती हैं. वह कहती हैं, "गर्भावस्था शरीर को कई तरह से बदल देती है. आपको सबसे पहले अपने शरीर की सुननी होगी."
खेल में गढ़ी जा रही मातृत्व की नई परिभाषासोनिका कहती हैं, "पावरलिफ़्टिंग ने मुझे एक भरोसा दिया कि मैं एक मां और एक एथलीट दोनों बन सकती हूं."
उन्हें इसकी प्रेरणा विदेश से भी मिली.
"मैंने दूसरे देशों की महिलाओं के बारे में पढ़ा जिन्होंने प्रेग्नेंसी के दौरान भी सुरक्षित तरीके से अपना खेल जारी रखा. अगर वे मेडिकल गाइडेंस से ऐसा कर सकती हैं, तो हम क्यों नहीं?"
सोनिका कहती हैं, "प्रेग्नेंसी को अक्सर महिलाओं के लिए एक बीमारी माना जाता है, लेकिन मैं इस टैबू को तोड़ना चाहती थी. यह जीवन का एक पड़ाव है, कोई बीमारी नहीं."
उनके लिए, प्रतियोगिता मेडल्स के बारे में नहीं थी, यह मानसिकता के बारे में थी. वह आगे कहती हैं, "मैं नहीं चाहती कि प्रेग्नेंसी को किसी रुकावट की तरह देखा जाए."
2014 में, अमेरिका की धावक एलिसिया मोंटानो ने आठ महीने की प्रेग्नेंसी में यूएस आउटडोर ट्रैक एंड फ़ील्ड चैंपियनशिप में हिस्सा लिया था.
एक दशक बाद, मिस्र की तलवारबाज़ नाडा हाफ़िज़ ने सात महीने की प्रेग्नेंसी में पेरिस ओलंपिक में हिस्सा लिया था.
सोनिका कहती हैं कि उनकी कहानियां उन्हें याद दिलाती हैं कि ताकत कई रूपों में आती है. वह कहती हैं, "उन्होंने मुझे अपने शरीर पर भरोसा करने के लिए प्रेरित किया."
दिल्ली वापस आकर, सोनिका हल्की-फुल्की ट्रेनिंग करती हैं, लेकिन उनका ध्यान केंद्रित रहता है.
वह कहती हैं, "मैं ज़िंदगी भर एक एथलीट बनी रहना चाहती हूं. सिर्फ़ मेडल के लिए नहीं, बल्कि यह दिखाने के लिए कि मातृत्व और महत्वाकांक्षा साथ-साथ हो सकती हैं."
ऐसे समाज में जहां गर्भावस्था को अक्सर एक ठहराव के तौर पर देखा जाता है, सोनिका यादव ने सिर्फ़ वज़न ही नहीं उठाया, बल्कि उन्होंने चुनने के अधिकार, ताकत और मातृत्व पर बातचीत का मुद्दा उठाया है.
ध्यान दें: अगर आप अपने खानपान, इलाज, दवाइयों, एक्सरसाइज़ में कोई बदलाव लाना चाहते हैं, तो डॉक्टर और एक्सपर्ट्स की सलाह ज़रूर लें.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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