वाराणसी, 15 मई (हि.स.)। मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह शुरू से ही परिवार में रहना पसंद करता रहा है। सदियों पहले से परिवार जैसी संस्था समाज और देश में मजबूती का आधार बनी रही। देश में वह भी एक समय था कि जब लोग संयुक्त परिवार में ही पलते—बढ़ते थे। जिसका जितना बड़ा परिवार होता था वह इलाके में उतना ही सम्पन्न और सौभाग्यशाली माना जाता था। पूरे इलाके में उस परिवार की खास पहचान और सामाजिक प्रतिष्ठा रहती थी। लेकिन आज दुर्भाग्य है कि भारत में ही संयुक्त परिवार टूटते जा रहे हैं। टूटते परिवार, दरकते रिश्तों, एकल परिवार के बढ़ते चलन के बावजूद आज भी संयुक्त परिवार की परम्परा में चंद लोग विश्वास बनाए हुए हैं। ऐसा ही एक संयुक्त परिवार वाराणसी के जगतगंज में शिक्षाविद और वरिष्ठ कांग्रेस नेता सत्यनारायण पांडेय ‘सत्तन गुरू’ का है। यहां तीन पीढ़ियों के सदस्य एक साथ मिलजुल कर एक ही छत के नीचे रहते हैं और एक साथ भोजन करते हैं।
पूजा अर्चना और गौसेवा से होती है दिन की शुरूआत
सामाजिक और आर्थिक रूप से सम्पन्न इस परिवार का खुद का गौशाला और अस्तबल भी है। भगवान की आराधना और गौसेवा से परिवार के सदस्य दिन की शुरूआत करते हैं। पांडेय परिवार में चालीस से अधिक सदस्यों का भोजन एक साथ रसोईघर में बनता है। परिवार की वरिष्ठ महिला सदस्य प्रेमा पांडेय और माया पांडेय, नीलिमा पांडेय, इंदिरा पांडेय, माधुरी पांडेय की देखरेख में महिला सदस्यों की खाना बनाने और सब्जी काटने के लिए पाली बंधती है। इस कार्य में जयलक्ष्मी पांडेय, प्रिया, शालिनी, प्रतिभा, रेखा, नीतू (उच्च शिक्षित सभी बहू) पूरा सहयोग करती हैं। खाना बनने के बाद भगवान शालिग्राम को भोग लगता है। इसके बाद परिवार के पुरूष सदस्य और बच्चे पहले भोजन करते हैं। इसके बाद परिवार की महिलाएं भोजन करती हैं।
संयुक्त परिवार में मिलती है आत्मिक सुख
कांग्रेस के नेता सत्यनारायण पांडेय की बहन कल्पना पांडेय बताती हैं कि परिवार के सदस्यों में प्रेम, स्नेह, भाईचारा और अपनत्व का एक विशिष्ट माहौल, रिश्तों की गर्माहट देख आत्मिक खुशी मिलती है। हमारे परिवार में सबसे बड़े सदस्य श्याम नारायण पांडेय हैं। परिवार के मुखिया भी वहीं है। इतने बड़े परिवार को एक सूत्र में बांधना आसान भी नहीं रहा। परिवार को एकजुट रखने में बड़े भाई सत्यनारायण पांडेय की अह्म भूमिका है। पिछले पचास सालों से वे अनवरत इस कार्य को कर रहे हैं।
परिवार में तीन पीढ़ियों से है एका
सत्यनारायण पांडेय ने बताया कि तीन पीढ़ियां पहले बाबा के समय से हमारा परिवार संयुक्त रूप से साथ रहता आया है। हमारे बाबा दुर्गा प्रसाद पांडेय तीन भाई थे। बाबा के दोनों भाइयों मुन्नू पांडेय,धूमावती पांडेय का परिवार भी एकसाथ ही रहता था। बाबा दुर्गा प्रसाद पांडेय के तीन पुत्रों में मेरे पिताजी स्व. डॉ गंगानाथ पांडेय के सात पुत्र बड़े भाई नारायण पांडेय, श्याम नारायण पांडेय, हरिनारायण पांडेय, खुद (सत्यनारायण पांडेय),गोपाल नारायण पांडेय,अशोक पांडेय, विनोद पांडेय और बड़े पिताजी रामऔतार पांडेय के पुत्र रामनारायण पांडेय का परिवार एक साथ रहता है। परिवार में हम तीन भाइयों की अर्धांगिनी अब इस दुनिया में नहीं है। परिवार में हमारे लड़के,भाइयों के लड़के और पुत्रवधुओं के साथ उनके बच्चे साथ ही रहते हैं। परिवार के युवा सदस्य दूसरे शहरों में भी नौकरी और व्यवसाय कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि घर में किसी भी कार्य का निर्णय पहले मां अब इस दुनिया में नहीं है करती थी। अब बड़े भाई श्याम नारायण पांडेय करते हैं। निर्णय में किसी का रोक-टोक नहीं होता। उनके द्वारा जो भी निर्णय कर लिया जाता है, वह मान्य होता है। सत्यनारायण पांडेय ने कहा कि समाज में सम्पन्नता की निशानी परिवार की प्रतिष्ठा से लगाई जानी चाहिए। बदलते दौर में ‘स्व’ में केंद्रित जीवन को त्याग करना होगा। इसी निजता ने व्यक्ति को परिवार से दूर करने के लिए प्रेरित किया। जबसे व्यक्ति ने अपने भतीजे या भतीजी को छोड़कर अपने बेटे या बेटी के बारे में सोचना शुरू किया है, तब से संयुक्त परिवार टूटे हैं।
उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया में अधिक समय देने से भी बचना होगा। एक छत के नीचे रहने भर से परिवार का अर्थ पूरा नहीं होता, एक दूसरे की भावनाओं को समझने के साथ ही एक दूसरे को समझना, सम्मान देना, सुख-दु:ख में भागीदारी के साथ परिवार के सदस्यों की मदद का भाव रखना भी जरूरी है।
बताते चले हर साल 15 मई को विश्व परिवार दिवस मनाया जाता है। इसे मनाने की शुरुआत 1994 से हुई थी। इसका उद्देश्य केवल परिवार की एकता को समझाना था। आजकल की व्यस्त जिंदगी में लोग अपने परिवार को समय नहीं दे पाते हैं। कई लोग ऐसे भी होते हैं जो परिवार के साथ रहना भी नहीं चाहते हैं। ऐसे में ये दिन परिवार की अहमियत बताने के लिए ही बना है। स्पष्ट संदेश है वह परिवार ही होता है, जो सुख-दुख में आपके साथ खड़ा रहता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी
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