New Delhi, 11 अगस्त . Supreme court ने मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तलाक-ए-हसन, तलाक-ए-अहसन, तलाक-ए-किनाया और तलाक-ए-बाईन जैसी प्रथाओं पर गहन जांच शुरू की है. कोर्ट ने इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी), राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) से राय मांगी है. यह कदम तलाक पीड़िता बेनजीर हिना की याचिका के बाद उठाया गया है.
कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक (तलाक-ए-बिदत) को 2017 में असंवैधानिक घोषित करने के बावजूद, तलाक-ए-हसन जैसी प्रथाएं अब भी जारी हैं. तलाक-ए-हसन में तीन महीने के अंदर हर महीने एक बार तलाक कहा जाता है, जिससे रिश्ता खत्म हो जाता है. इससे महिलाओं और उनके बच्चों की जिंदगी पर गहरा असर पड़ रहा है. कोर्ट ने इन प्रथाओं के सामाजिक और कानूनी प्रभावों की जांच के लिए आयोगों को नोटिस जारी किया है.
Monday (11 अगस्त) की सुनवाई में अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इन जनहित याचिकाओं का विरोध किया और कहा कि ये याचिकाएं विचारणीय नहीं हैं. बोर्ड का तर्क है कि ये मुद्दे निजी कानून के दायरे में आते हैं.
वहीं, अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कोर्ट में दलील दी कि तीन तलाक मामले में कोर्ट ने तलाक-ए-हसन जैसे अन्य तरीकों पर फैसला नहीं दिया था. लेकिन, अब इसकी जरूरत है. उन्होंने समाचार एजेंसी से बातचीत में कहा कि एकतरफा तलाक, चाहे वह चिट्ठी, ईमेल, व्हाट्सएप या एसएमएस से हो, बंद होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि कोर्ट ने केंद्र सरकार को भी नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. मामले की अगली सुनवाई 19 और 20 नवंबर 2025 को होगी.
उपाध्याय ने कहा, ” इस फैसले से देश की महिलाओं को न्याय मिलेगा और तलाक की प्रक्रिया हर किसी के लिए समान होगी. गुजारा भत्ता भी सभी को समान रूप से मिलना चाहिए और एक समान कानून लागू होना चाहिए, जो एकतरफा तलाक पर रोक लगाए.”
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एसएचके/केआर
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