By Jitendra Jangid- दोस्तो किसी भी अपराध की सजा देने के लिए भारत में अदालत हैं, जो अपराधो के अनुसार बट़ी हुई हैं, ऐसे में बात करें लोक अदालत की तो ये पारंपरिक न्यायिक प्रणाली से बाहर विवादों के समाधान के लिए एक प्रभावी और सुलभ मंच माना जाता है। यह आपसी सहमति के सिद्धांत पर काम करती है, जिससे लंबी कानूनी कार्यवाही के बिना त्वरित और किफ़ायती न्याय सुनिश्चित होता है। आइए जानते लोक अदालत में किन केस की सुनवाई होती हैं-

आपसी समझौता: मामलों का निपटारा पक्षों के बीच समझौते से होता है, न कि कठोर कानूनी निर्णय से।
दीवानी और समझौता योग्य आपराधिक मामले: मुख्य रूप से दीवानी विवादों और आपराधिक मामलों की सुनवाई होती है जिनका कानून के तहत समझौता किया जा सकता है।
दीवानी मामलों के प्रकार: संपत्ति विवाद, वित्तीय मुद्दे और पारिवारिक मामले आमतौर पर निपटाए जाते हैं।
मुकदमेबाजी-पूर्व मामले: ऐसे विवाद जो अभी तक अदालत में दायर नहीं किए गए हैं, लेकिन कानूनी रूप से दायर किए जाने योग्य हैं, उन पर भी विचार किया जा सकता है।

अन्य सामान्य मामले: ट्रैफ़िक चालान, बैंक वसूली मामले और बीमा दावा विवाद अक्सर यहाँ सुलझाए जाते हैं।
बाध्यकारी निर्णय: लोक अदालत द्वारा पारित निर्णयों का न्यायालय के आदेश के समान ही महत्व होता है और उनके विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती।
वैकल्पिक न्याय प्रणाली: विवाद समाधान के लिए एक अनुकूल, समय बचाने वाला और लागत प्रभावी विकल्प प्रदान करती है।
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