अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने बताया कि मिशन पर रवाना होने से पहले ‘एक्सिओम-4’ के चालक दल के सदस्य कृत्रिम वातावरण में जीवित रहने के परीक्षण, अंतरिक्ष अनुभव को रिकॉर्ड करने के लिए फोटोग्राफी सीखने और टीम भावना को मजबूत करने के लिए मैक्सिको के तट पर ‘कायकिंग’ (नौकायान) करने जैसे कुछ अनुभवों से गुजरे थे।
ग्रुप कैप्टन शुक्ला को लोग प्यार से ‘शुक्स’ कहकर बुलाते हैं। उन्होंने रविवार को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) के लिए ‘एक्सिओम-4 मिशन’ का हिस्सा होने और उससे पहले लिए गए प्रशिक्षण के अपने अनुभवों और चुनौतियों को साझा किया।
अंतरिक्ष के लिए रवाना होने से पहले ‘एक्सिओम-4 मिशन’ कई बार स्थगित हुआ और आखिरकार शुक्ला एवं तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर ‘ड्रैगन’ अंतरिक्ष यान 25 जून को अमेरिका के कैनेडी अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित हुआ।
शुक्ला ने प्रक्षेपण के अनुभव की तीव्रता को याद करते हुए कहा, ‘‘यह इतना शक्तिशाली था कि यह सचमुच आपके शरीर की हर हड्डी को हिलाकर रख देता है। आप 8.5 मिनट में शून्य किलोमीटर प्रति घंटा से 28,500 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार पर पहुंच जाते हैं और यही इसकी तीव्रता को दर्शाता है।’’
अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपित होने पर भारत और दुनिया भर के लोगों ने इस मिशन का उत्साह बढ़ाया और 15 जुलाई को धरती पर वापसी के दौरान भी लोगों ने वही जोश दिखाया।
लखनऊ में जन्मे शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) की यात्रा करने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री बने और उन्होंने इस मिशन के अनुभव को ‘‘बेहद रोमांचक’’ बताया।
भारतीय वायुसेना द्वारा यहां सुब्रतो पार्क में आयोजित कार्यक्रम के दौरान उन्होंने इस मिशन के तहत अपने 20-दिवसीय अंतरिक्ष प्रवास के कुछ किस्से भी साझा किए, जिसके लिए कई महीनों का कड़ा प्रशिक्षण लिया गया था।
उन्होंने कहा, ‘‘जब आप अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन जाते हैं, तो आप असल में एक नए घर में रहते हैं और इसके अपने नियम और शर्तें होती हैं, जैसे आप कैसे खाएंगे, कैसे सोएंगे। आप बाथरूम कैसे जाएंगे।’’ शुक्ला माहौल की गंभीरता को कम करते हुए थोड़े हास्य के अंदाज में कहा, ‘‘दरअसल अंतरिक्ष में शौचालय जाना सबसे चुनौतीपूर्ण काम होता है।’’
अंतरिक्ष यात्री शुक्ला इसी 10 अक्टूबर को 40 वर्ष के हो जाएंगे। वह 2006 में भारतीय वायुसेना में शामिल हुए थे और वह सुखोई-30 एमकेआई, मिग-29, जगुआर और डोर्नियर-228 जैसे उन्नत लड़ाकू विमानों पर 2,000 घंटे से ज्यादा उड़ान भरने के अनुभव के साथ एक सम्मानित परीक्षण पायलट बने।
शुक्ला शुरू से ही ‘‘शर्मीले और संकोची’’ स्वभाव वाले व्यक्ति रहे हैं और बचपन में वह राकेश शर्मा की 1984 की अंतरिक्ष उड़ान की कहानियां सुनते हुए बड़े हुए हैं। अंतरिक्ष की उनकी हालिया यात्रा ने उन्हें जीवन का नया अनुभव कराया है। वह अब खुद लोगों के लिए प्रेरणा बन गए हैं। उन्होंने स्कूली छात्रों को ऑटोग्राफ दिए और कार्यक्रम में अपने साथी वायुसेना कर्मियों के साथ फोटो खिंचवाई।
यह बदलाव कैसा लग रहा है, यह पूछे जाने पर उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘अंतरिक्ष और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रति छात्रों में उत्साह देखकर बहुत अच्छा लग रहा है।’’
‘एक्सिओम-4 मिशन’ में उनका योगदान एक मिशन पायलट का था, जिसमें अमेरिका की कमांडर पैगी व्हिटसन और पोलैंड के मिशन विशेषज्ञ स्लावोज उज्नान्स्की-विस्नीव्स्की और हंगरी के टिबोर कापू भी शामिल थे।
उन्होंने कहा, ‘‘एक मिशन पायलट के रूप में आपको ‘डिस्प्ले’ और ‘कैप्सूल’ के संपर्क में रहना होता है। इसलिए, मिशन विशेषज्ञ की तुलना में आपका प्रशिक्षण थोड़ा कठिन होता है।’’
ह्यूस्टन स्थित नासा (नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) के जॉनसन स्पेस सेंटर सहित प्रशिक्षण के अनुभव को याद करते हुए शुक्ला ने कहा, ‘‘पिछले एक साल से यह अनुभव अद्भुत रहा है।’’
शुक्ला ने जीवन विज्ञान, कृषि, अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी और बोधात्मक अनुसंधान के विविध क्षेत्रों में भारत के नेतृत्व वाले सात सूक्ष्म-गुरुत्व प्रयोग किए।
अपने संबोधन के दौरान शुक्ला ने अपने प्रशिक्षण कार्यक्रम के कुछ वीडियो और अंतरिक्ष से देखे गए भारत के दृश्यों की एक छोटी क्लिप भी साझा की, जिसे उन्होंने कैमरे में कैद करने की कोशिश की थी।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत वाकई बहुत खूबसूरत दिखता है। मैं ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं कह रहा हूं क्योंकि हम सब भारतीय हैं और यहां बैठे हैं, बल्कि मुझे लगता है कि अगर आप स्टेशन पर मौजूद किसी भी अंतरिक्ष यात्री से बात करें... तो वे भी यही कहेंगे। इसकी अनोखी स्थिति और आकार इसे खास बनाता है, खासकर रात के समय, अगर आप भारत के ऊपर से गुजरते हैं, हिंद महासागर से दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हैं, तो मुझे लगता है कि यह शायद आपके जीवन में देखे जाने वाले सबसे खूबसूरत नजारों में से एक है।’’
शुक्ला ने उस खगोलीय अनुभव को याद करते हुए कहा कि कक्षा से, चालक दल ने दिन में 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त देखा और ‘‘आप इससे कभी ऊबते नहीं हैं’’।
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