उत्तर प्रदेश की राजनीति में कभी निर्णायक भूमिका निभाने वाली बहुजन समाज पार्टी (BSP) आज अपने अस्तित्व के सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। लगातार लोकसभा और विधानसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या पंचायत चुनाव के जरिए मायावती एक बार फिर पार्टी को राजनीतिक पुनर्जीवन दिला पाएंगी?
पिछले चुनावों में BSP का गिरता ग्राफ
2019 के लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन के बावजूद बीएसपी को उम्मीद के मुताबिक कामयाबी नहीं मिल सकी। 2022 के विधानसभा चुनावों में तो पार्टी पूरी तरह हाशिए पर चली गई। पार्टी का मत प्रतिशत गिरकर दो अंकों में भी नहीं रहा और सीटें तो गिनती में ही रह गईं। कार्यकर्ताओं में निराशा और संगठन में निष्क्रियता साफ झलकने लगी।
पंचायत चुनाव: जमीनी स्तर से वापसी की कोशिश
अब बीएसपी की नजर 2025 के संभावित पंचायत चुनावों पर है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, मायावती खुद संगठन को बूथ स्तर पर फिर से खड़ा करने में जुटी हैं। उनका मानना है कि यदि पार्टी पंचायत स्तर पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेती है, तो इससे कार्यकर्ताओं में जोश लौटेगा और पार्टी दोबारा जनाधार बना पाएगी।
दलित और मुस्लिम वोट बैंक की फिर से तलाश
बीएसपी का पारंपरिक दलित वोट बैंक पिछले कुछ वर्षों में भाजपा और सपा की ओर खिसका है। वहीं, मुस्लिम मतदाता भी असमंजस की स्थिति में हैं। पंचायत चुनावों के जरिए बीएसपी इन दोनों वर्गों को एक बार फिर अपने साथ जोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है। मायावती कई आंतरिक बैठकों में कह चुकी हैं कि “सत्ता के लिए हमें पहले गांव-गांव में संगठन खड़ा करना होगा।”
राजनीतिक विश्लेषकों की राय
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि पंचायत चुनाव किसी भी पार्टी के लिए जमीनी पकड़ साबित करने का मंच होते हैं। अगर बीएसपी यहां अच्छा प्रदर्शन करती है, तो यह 2027 के विधानसभा चुनावों की नींव रख सकता है। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि संगठन के कमजोर ढांचे, नेतृत्व के एकाकीपन और जनसंपर्क की कमी को दूर किए बिना बीएसपी की वापसी आसान नहीं होगी।
क्या बदल रही है रणनीति?
सूत्रों की मानें तो बीएसपी अब सोशल मीडिया पर भी सक्रियता बढ़ा रही है। पंचायत प्रतिनिधियों को संगठन से जोड़ने और युवाओं को प्रेरित करने की मुहिम शुरू की जा रही है। इसके अलावा, टिकट वितरण में पारदर्शिता और स्थानीय नेतृत्व को बढ़ावा देने की बात कही जा रही है।
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