फिल्म निर्माता-लेखक सीमा कपूर इन दिनों अपनी बायोग्राफी 'यूं गुजरी है अब तलक' को लेकर सुर्खियों में हैं। जब हमने सीमा कपूर से उनकी किताब और निजी जिंदगी के बारे में बात की, तो उन्होंने बड़ी बेबाकी से अपनी जिंदगी के पन्ने कुछ इस तरह खोले...
हमारा रिश्ता किसी ने नहीं समझा
जब आपका कोई अपना कुछ गलत करता है तो उसके किए पर आप खुद भी शर्मिंदा होते हैं। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। मुझे छोड़कर जब पुरी जी ने दूसरी शादी की तो दुखी होने के साथ साथ मुझे शर्मिंदगी भी महसूस हो रही थी। ओम पुरी जी के बारे में कुछ कहने से पहले मैं क़तील शिफ़ाई जी की इन पंक्तियों से अपनी बात की शुरुआत करना चाहती हूं- वो मेरा दोस्त है सारे जहां को है मालूम दगा करे जो किसी से तो शर्म आए मुझे पुरी जी के बारे में मीडिया में बहुत कुछ भला-बुरा लिखा-कहा गया। लेकिन हमारे रिश्ते को किसी ने समझने की कोशिश नहीं की। जब पुरी जी मुझे तलाक देने के लिए कोर्ट तक पहुंच गए तब भी मैंने उनके खिलाफ ऐसा कुछ नहीं कहा जिससे उनका सम्मान कम हो। न ही मैंने कहीं कोई इंटरव्यू दिया। आज पुरी जी अपना पक्ष रखने के लिए हमारे बीच नहीं हैं। ऐसे में हमारी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि हम ऐसा कुछ न कहें कि खुद से नजर न मिला सकें।
नाटक मेरे पापा का पहला प्यार था
हमारे परिवार में हमेशा से पढ़ाई-लिखाई का अच्छा माहौल रहा है। पिताजी की नाटक कंपनी पहले बहुत मशहूर थी। लेकिन जब फिल्मों का दौर शुरू हुआ तो नाटक कंपनी तकलीफ में आ गईं। इसका असर हमारे घर की आर्थिक स्थिति पर भी पड़ा। हमारी आर्थिक स्थिति भले ही कमजोर होने लगी, लेकिन माता-पिता के साहित्य प्रेम के कारण हम बौद्धिक रूप से हमेशा संपन्न रहे। हम पापा की नाटक कंपनी में काम नहीं करते थे। सिर्फ अन्नू भैया (अभिनेता अन्नू कपूर) ने कुछ समय तक पापा की नाटक कंपनी में काम किया था। फीस न भर पाने के कारण उनका स्कूल छूट गया था। इस खाली समय में भैया ने पापा के थिएटर ग्रुप के लिए काम किया था। हम चार भाई-बहन में सबसे बड़े भाई रंजीत कपूर निर्देशक-पटकथा लेखक बने, अन्नू कपूर अभिनेता, मैं निर्माता-एक्ट्रेस और सबसे छोटे भाई निखिल लेखक-गीतकार बने। संभ्रांत परिवार के होने के बावजूद मेरे पिताजी को इतनी तकलीफें इसलिए सहन करनी पड़ीं क्योंकि उन्हें थिएटर पसंद था। अपनी पसंद का काम करने की उन्होंने बहुत बड़ी कीमत चुकाई। मां भी काफी समय तक काम ढूंढ़ती रहीं। जब मां को काम नहीं मिला तो एक दिन मैंने इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर उसमें अपना गुस्सा जाहिर किया। इस पत्र का असर ये हुआ कि मां को स्कूल में नौकरी मिल गई।
पहचान या पड़ोस के हर अंकल सही नहीं होते
6-7 साल की उम्र में मैं दो लोगों की बुरी नीयत का शिकार हुई। एक को तो मेरी सुरक्षा के लिए मेरे साथ भेजा गया था। सुरक्षा के नाम पर उसने खुद मुझे असुरक्षित कर दिया। एक अंकल ने डरा-धमकाकर मेरे साथ जबरदस्ती की। इन दोनों घटनाओं ने मुझे इतना डरा दिया कि अंतर्मुखी हो गई। उन घटनाओं का असर मुझ पर आज भी है। मेडिटेशन करके मैंने काफी हद तक खुद को कंट्रोल किया है। मैं अपने साथ हुई गंदी हरकतों के बारे में किसी को कुछ बता नहीं सकी। मुझे इस बात का डर था कि मेरी बात पर विश्वास कौन करेगा। उस समय बच्चों को ‘गुड टच बैड टच’ के बारे में नहीं बताया जाता था। ऐसी घटनाओं को खामोशी से दबा दिया जाता था। मैं चाहती तो अपनी किताब में इन घटनाओं को न लिखती। लेकिन मैं बेटियों के माता-पिता को सतर्क करना चाहती हूं। मैं ये बताना चाहती हूं कि कोई कितना ही सगा क्यों न हो, अपनी बेटी को किसी के साथ भी अकेला ना छोड़ें। साथ ही लड़कियों को ये हौसला देना चाहती हूं कि उनके साथ अगर ऐसी घटना होती है तो खुलकर अपनी आवाज उठाएं। दोषी को सजा दिलाएं। इससे समाज में बदलाव आएगा।
मेरे करियर की शुरुआत पपेट शो से हुई

हमारा बचपन मध्य प्रदेश में बीता। पढ़ाई पहले मध्य प्रदेश, फिर राजस्थान में हुई। फिर रंजीत और अन्नू भैया को एनएसडी में एडमिशन मिल गया। मेरी आगे की पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हुई। उसके बाद मैंने दिल्ली के श्रीराम सेंटर में पपेट थिएटर जॉइन कर लिया। 7-8 साल तक मैंने पपेट शो किए। मुझे जापान कनाडा, रशिया, जर्मनी जैसे देशों में जाकर पपेट शो करने के अवसर मिले। फिर पपेट शो का क्रेज भी कम होने लगा। सर्वाइवल के लिए मैंने सीरियल बनाने के निर्णय लिया। मैंने पहला सीरियल ‘किले का रहस्य’ बनाया। उसमें काफी नुकसान उठाना पड़ा। लेकिन मैंने हार नहीं मानी। मैं काम करती रही। आज भी कर रही हूं। मैं ये मानती हूं कि मुझमें बहुत हिम्मत है। इसी वजह से मैं इतना कुछ झेल पाई।
प्यार में शर्तें नहीं होतीं
ओम पुरी जी से मैं 1979 में मिली। मेरे बड़े भाई रंजीत कपूर कॉमेडी प्ले ‘बिच्छू’ तैयार कर रहे थे। उसी में काम करने के लिए ओम पुरी जी आए हुए थे। ओम जी को लगता था कि वो कॉमेडी नहीं कर सकते, लेकिन रंजीत भैया को भरोसा था कि ओम जी बहुत अच्छी कॉमेडी कर सकते हैं। उस प्ले के बाद ओम पुरी जी ने ‘जाने भी दो यारों’ जैसी कॉमेडी फिल्मों में काम किया। ओम जी मेरे बड़े भाई के मित्र और मुझसे 10 साल बड़े थे। उनका केयरिंग स्वभाव मुझे अच्छा लगता था, लेकिन तब मन में प्यार जैसी कोई फीलिंग नहीं थी। धीरे-धीरे दोस्ती हुई और फिर हमें प्यार हो गया। जब मेरे पिता इस दुनिया में नहीं रहे तब ओम जी अपने पिताजी को लेकर हमारे घर शादी तय करने आए। हमने 1990 यानी 11 साल बाद शादी की। फिर पुरी जी जिंदगी में दूसरी महिला (नंदिता पुरी) आ गई। इसलिए वो मुझसे अलग होना चाहते थे। ये सुनना ही मेरे लिए बहुत तकलीफ भरा था। पुरी जी ने जब अलग होने की बात की तब मैं प्रेग्नेंट थी। उस समय मुझे उनके प्यार और केयर की सबसे ज्यादा जरूरत थी। उस समय मैंने अपना प्यार भी खोया और आने वाली संतान भी। उस दुख से बाहर निकलना मुश्किल था। लेकिन मां को देखकर मैंने खुद को संयत किया। मां अक्सर कहती थीं, “ओम चींटियों भरा कबाब है।” उनकी बात सही थी। ओम जी को न मैं पूरी तरह पा सकी और न उनसे दूर रह सकी। कई बार इंसान से इतनी गलतियां हो जाती हैं कि उसकी और दूसरे की जिंदगी भी खराब हो जाती है। बाद में पुरी जी इस बात से शर्मिंदा थे कि उनसे ये कैसे हो गया।
पुरी जी लौटे तो मैं भी पिघल गई

पुरी जी से मिले दुख के बाद मैंने खुद को करियर में बिजी कर दिया। शायद ईश्वर मुझे मजबूत बनाना चाहते थे इसलिए मुझे इतना दुख दिया। 35 साल पहले किसी महिला के लिए तलाक की स्थिति से गुजरना इतना आसान नहीं था। लेकिन टूटने की बजाय मैंने खुद को मजबूत बनाया और जिंदगी के नए रास्ते तलाशे। बाद में पुरी जी खुद इस बात से शर्मिंदा थे कि उनसे ये क्या गलती हो गई। दूसरी शादी कर लेने के बावजूद जब वो मेरे पास आए उस वक्त वो बीमार थे। भले ही हमारा तलाक हो चुका था, लेकिन पहले हम एक दूसरे को दिलोजान से चाहते थे। अगर आपका प्यार तकलीफ में हो तो आप उसे उस हालत में नहीं देख पाते। मैं भी पुरी जी को उस हालत में नहीं देख सकी। उनका मेरे पास लौटना अन्नू भैया को भी पसंद नहीं आया। लेकिन मैं अपने दिल के हाथों मजबूर थी। मैं उन्हें दुखी नहीं देख सकती थी। जब पुरी जी ने मुझसे तलाक मांगा मैंने तब भी उनके लिए एक भी गलत शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। आज पुरी जी हमारे साथ नहीं हैं, लेकिन मैं उन्हें हर पल अपने पास महसूस करती हूं।
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