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दिल्लीः प्रोसेस महंगी, रिजल्ट कम? कृत्रिम बारिश को परमानेंट समाधान क्यों नहीं मान रहे एक्सपर्ट

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नई दिल्ली: कृत्रिम बारिश करवाकर लोगों को स्मॉग से राहत दिलवाने के लिए राजधानी में अब तक क्लाउड सीडिंग के तीन ट्रायल हो चुके हैं। इनमें दो ट्रायल मंगलवार को हुए। हालांकि तीनों ट्रायल रन में उम्मीद मुताबिक बारिश देखने को नहीं मिली। एक्सपर्ट इस प्रकिया को लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं। उनका कहना है कि नतीजों के हिसाब से यह एक बहुत महंगी प्रक्रिया है। इसकी राहत कुछ समय के लिए रहती है। वहीं, सर्दियों में इसके नतीजे अस्पष्ट हैं। इसकी बारिश हुई तो भी वह कम ही रहेगी। कम बारिश में स्मॉग से राहत मिलने की संभावना काफी कम रहेगी।

कम बारिश में स्मॉग से राहत मिलने की संभावना काफी कममौसम विभाग के पूर्व डीजी केजे रमेश ने बताया कि कृत्रिम बारिश के लिए प्राकृतिक बादल का होना जरूरी है। इसके बिना बारिश नहीं हो सकती। राजधानी में सर्दियों में बादल कम होते है। अब तक रिसर्च में कृत्रिम बारिश का पानी नुकसानदेह नहीं है। पानी में सिल्वर आयोडाइड मिला होता है। इसका सीमित मात्रा में इस्तेमाल सेहत पर खराब असर नहीं करता। कृत्रिम बारिश में बढ़ते हुए बादलों को रोककर बारिश करवाई जा सकती है। वहीं, इससे इसके बाद के क्षेत्र में बारिश कम होगी। हालांकि यह फ्रीक्वेंट नहीं है।

मंगलवार को क्लाउड सीडिंग की गई दो बारउन्होंने बताया कि इस बारिश से प्रदूषक तत्व नीचे तो आ सकते है, लेकिन इसकी अपनी सीमाएं है। यह कुछ ही इलाकों में की जा सकती है। वहीं, प्रदूषण में थोड़ी कमी आएगी। बाकि जगहों पर स्थिति नहीं बदलेगी। जहां यह बारिश होगी, वहां भी इसका असर सीमित समय के लिए होगा। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनुमिता रायचौधरी ने बताया कि मंगलवार को क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया दो बार की गई, लेकिन शाम 8 बजे तक बारिश नहीं हुई। अब सवाल यह उठता है कि अगर बारिश हो भी जाती है तो उससे प्रदूषण में कितनी राहत मिलेगी। इतनी महंगी प्रक्रिया कर अगर चंद घंटों के लिए प्रदूषण एक छोटे एरिया से घुल जाता है तो कुछ घंटों में वह वापस आएगा और लोगों की सेहत पर और बुरा असर डालेगा। प्रदूषण को कम करने के लिए प्रदूषण के कारणों को कम करने की जरूरत है।


प्रदूषण के सोर्स पर काम करने की जरूरतआईफॉरेस्ट के फाउंडर और सीईओ डॉ. चंद्रभूषण ने बताया कि कई देशों में क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया हुई है। चीन, पाकिस्तान, दुबई सभी जगह इसे किया गया। हर जगह नतीजे बहुत अच्छे नहीं रहे। दो साल पहले पाकिस्तान में भी इसे करवाया गया। हल्की फुल्की बारिश हुई और चंद घंटों में स्मॉग आ गया। एक्सपेरिमेंट के लिहाज से इसे एक आद बार किया जा सकता है, लेकिन यह स्थाई समाधान नहीं है। प्रदूषण के सोर्स पर काम करने की जरूरत है।


'दूसरे तरीके खोजने की जरूरत है'एनवायरोकेटालिस्ट के फाउंडर और सीईओ सुनील दहिया ने बताया कि एयर क्वॉलिटी को ठीक करने के लिए ट्रांसपोर्ट, पावर कचरे और कंस्ट्रक्शन से होने वाले सेक्टर-स्पेसिफिक एमिशन से निपटना होगा। इसके बिना कोई और कदम जैसे क्लाउड सीडिंग, स्मॉग टावर, एंटी-स्मॉग गन जैसे कॉस्मेटिक उपाय काम नहीं करेंगे। यह कॉस्मेटिक उपाय कुछ समय के लिए विजिबिलिटी के फायदे दे सकते हैं, लेकिन इसे सस्टेनेबल सॉल्युशन नहीं कहा जा सकता। इस तरीकों के बजाय, राज्यों और एजेंसियों के बीच मिलकर काम करने पर ध्यान देना चाहिए। प्रदूषण को कम करने के लिए एयरशेड-बेस्ड तरीका अपनाया जाए और प्रदूषण के असली सोर्स को टारगेट किया जाए।
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