पटना: भारतीय राजनीति सिर्फ नीतियों और वादों तक सीमित नहीं है, बल्कि यहां व्यक्तिगत व्यंग्य और चुटीले उपनामों (निकनेम) की भी लंबी परंपरा रही है। जब राजनेता अपने प्रतिद्वंद्वियों को मजेदार 'निकनेम' देते हैं, तो वो नाम जनता की जुबान पर चढ़ जाते हैं। फिर चुनावी माहौल को और भी चटपटा बना देते हैं। दरभंगा की सभा में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के दिए 'पप्पू', 'टप्पू' और 'अप्पू' निकनेम की चर्चा राजनीतिक गलियारों में सुनाई दे रही है। बिहार चुनाव में, नेता अपने विरोधियों पर निशाना साधने के लिए 'रचनात्मकता' की हद पार कर रहे हैं। इन उपनामों का उपयोग अक्सर मजाक उड़ाने और किसी की राजनीतिक छवि को धूमिल करने के उद्देश्य से किया जाता है।   
   
   
राजनीति का 'निकनेम' ड्रामाचुनावी घमासान के बीच अब कुछ नए और हास्यास्पद उपनामों ने जगह बना ली है। चुनावी रैलियों में ये नाम तेजी से इस्तेमाल होते हैं। ये निकनेम इस बात का प्रमाण हैं कि किस तरह राजनीतिक जंग अब व्यक्तिगत मजाक और व्यंग्य में बदल चुकी है। ये नाम भले ही मजाकिया लगें, लेकिन इनका राजनीतिक असर गहरा होता है क्योंकि ये आसानी से याद हो जाते हैं और विरोधियों की छवि को हास्य के साथ जोड़ देते हैं।
   
     
पुराने नाम जो जुबान पर चढ़े'पलटू राम', 'मोटा भाई', और 'फेंकू राम' जैसे उपनाम भारतीय राजनीति में पहले भी काफी लोकप्रिय रहे हैं। 'पलटू राम' अक्सर उन नेताओं के लिए इस्तेमाल होता है जो बार-बार राजनीतिक गठबंधन बदलते हैं। वहीं, 'मोटा भाई' और 'फेंकू राम' जैसे नाम सीधे-सीधे बनावट या बड़बोलेपन पर तंज कसते हैं। इन नामों ने अपने समय में राजनीतिक चर्चाओं को एक नया रंग दिया था।
   
   
हास्य में छिपा राजनीतिक वारये नामकरण की कला केवल मजाक नहीं है, बल्कि ये एक प्रभावी राजनीतिक हथियार है। ये उपनाम जनता के बीच तेजी से फैलते हैं और प्रतिद्वंद्वी की गंभीर छवि को चुनौती देते हैं। जब कोई नेता किसी दूसरे नेता को 'पप्पू' या 'पलटू राम' कहता है, तो ये सीधा-सीधा उसके नेतृत्व या विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है।
   
   
पप्पू टप्पू अप्पू कौन, योगी ने बतायादरअसल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार बिहार के दरभंगा में चुनावी सभा को संबोधित किया। इस दौरान योगी आदित्यनाथ ने महात्मा गांधी के तीन बंदरों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इसके पीछे संदेश था कि बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो और बुरा मत कहो, जबकि इंडी गठबंधन में स्थिति अलग है। इस गठबंधन में भी तीन बंदर हैं। एक का नाम पप्पू है, दूसरे का टप्पू और तीसरे का नाम अप्पू है। पप्पू सच बोल नहीं सकता, टप्पू सच देख नहीं सकता और अप्पू सच सुन नहीं सकता। इन लोगों को एनडीए का काम नहीं दिखता। राहुल गांधी जहां जाते हैं, वहां भारत का अपमान करते हैं। ये तीन बंदर परिवार के माफिया को बहला-फुसलाकर और उन्हें अपना चेला बनाकर बिहार की सुरक्षा में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं।
  
राजनीति का 'निकनेम' ड्रामाचुनावी घमासान के बीच अब कुछ नए और हास्यास्पद उपनामों ने जगह बना ली है। चुनावी रैलियों में ये नाम तेजी से इस्तेमाल होते हैं। ये निकनेम इस बात का प्रमाण हैं कि किस तरह राजनीतिक जंग अब व्यक्तिगत मजाक और व्यंग्य में बदल चुकी है। ये नाम भले ही मजाकिया लगें, लेकिन इनका राजनीतिक असर गहरा होता है क्योंकि ये आसानी से याद हो जाते हैं और विरोधियों की छवि को हास्य के साथ जोड़ देते हैं।
पुराने नाम जो जुबान पर चढ़े'पलटू राम', 'मोटा भाई', और 'फेंकू राम' जैसे उपनाम भारतीय राजनीति में पहले भी काफी लोकप्रिय रहे हैं। 'पलटू राम' अक्सर उन नेताओं के लिए इस्तेमाल होता है जो बार-बार राजनीतिक गठबंधन बदलते हैं। वहीं, 'मोटा भाई' और 'फेंकू राम' जैसे नाम सीधे-सीधे बनावट या बड़बोलेपन पर तंज कसते हैं। इन नामों ने अपने समय में राजनीतिक चर्चाओं को एक नया रंग दिया था।
हास्य में छिपा राजनीतिक वारये नामकरण की कला केवल मजाक नहीं है, बल्कि ये एक प्रभावी राजनीतिक हथियार है। ये उपनाम जनता के बीच तेजी से फैलते हैं और प्रतिद्वंद्वी की गंभीर छवि को चुनौती देते हैं। जब कोई नेता किसी दूसरे नेता को 'पप्पू' या 'पलटू राम' कहता है, तो ये सीधा-सीधा उसके नेतृत्व या विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है।
आज INDI गठबंधन के तीन और बंदर आ गए हैं- पप्पू, टप्पू और अप्पू...
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) November 3, 2025
पप्पू सच बोल नहीं सकता,
टप्पू अच्छा देख नहीं सकता,
अप्पू सच सुन नहीं सकता... pic.twitter.com/hsW3t0JtEz
पप्पू टप्पू अप्पू कौन, योगी ने बतायादरअसल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार बिहार के दरभंगा में चुनावी सभा को संबोधित किया। इस दौरान योगी आदित्यनाथ ने महात्मा गांधी के तीन बंदरों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इसके पीछे संदेश था कि बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो और बुरा मत कहो, जबकि इंडी गठबंधन में स्थिति अलग है। इस गठबंधन में भी तीन बंदर हैं। एक का नाम पप्पू है, दूसरे का टप्पू और तीसरे का नाम अप्पू है। पप्पू सच बोल नहीं सकता, टप्पू सच देख नहीं सकता और अप्पू सच सुन नहीं सकता। इन लोगों को एनडीए का काम नहीं दिखता। राहुल गांधी जहां जाते हैं, वहां भारत का अपमान करते हैं। ये तीन बंदर परिवार के माफिया को बहला-फुसलाकर और उन्हें अपना चेला बनाकर बिहार की सुरक्षा में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं।
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