पटनाः तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनने की आशा में तीन उपमुख्यमंत्री बनाने की बात कर रहे हैं। तीन उप मुख्यमंत्री का मतलब है मजबूरी की सरकार। तीन उप मुख्यमंत्री की मतलब है अति महत्वाकांक्षी लोगों के बीच संतुलन साधने की कोशिश। लेकिन इस कोशिश में क्या सरकार स्थिर रहेगी ? सत्ता पर एकाधिकार की भावना रखने वाले लालू यादव क्या शक्ति का विकेन्द्रीकरण करेंगे ? चुनाव से पहले ही विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और भाकपा माले की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं कुलांचे भर रही हैं। ऐसे में तीन उप मुख्यमंत्री बनाने का वादा एक जोखिम भरा फैसला हो सकता है। अगर सरकार बनी तो तेजस्वी यादव को कदम- कदम पर समझौते करने पड़ेंगे। तीन उप मुख्यमंत्रियों का पहला प्रयोग 2019 में कर्नाटक में किया गया था। तब येदियुरप्पा ने जोड़ तोड़ से सरकार बनाने के लिए तीन उप मुख्यमंत्रियों का दांव खेला था। इस सरकार में विवादों और टकराव का अंतहीन सिलसिला चलता रहा और आखिरकार 2021 में उन्हें इस्तीफा देने लिए मजबूर होना पड़ा।
3 उप मुख्यमंत्रियों का पहला प्रयोग
2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला था। 224 सदस्यों वाले सदन में बहुमत के लिए 113 का आंकड़ा चाहिए था। येदियुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा 104 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। 7 सीटों की कमी से उसे बहुमत नहीं मिल पाया था। सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण येदियुरप्पा ने सरकार तो बना ली लेकिन बहुमत नहीं होने के कारण दो दिनों में ही इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद जेडीएस (37) और कांग्रेस (78) ने मिल कर सरकार बनायी। जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी सीएम बने।
इस प्रयोग के बाद भी गिर गयी सरकार
14 महीने बाद कुमारस्वामी की सरकार तब अस्थिर हो गयी जब कांग्रेस और जेडीएस के 15 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया। विश्वासमत हारने के बाद कुमारस्वामी को सीएम पद छोड़ना पड़ा। तब भाजपा के येदियुरप्पा ने सरकार बनायी। यह भी अवसरवाद और जोड़ तोड़ से बनी सरकार थी। सरकार चलाने और बचाने की मजबूरी में तीन उपमुख्यमंत्री बनाने पड़े। इन तीन में से एक उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी किसी सदन के सदस्य नहीं थे। राजनीतिक कलह और अशांति के कारण येदियुरप्पा को भी 2021 में सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा। तीन उपमुख्यमंत्रियों का प्रयोग भी येदियुरप्पा सरकार को नहीं बचा सका।
क्या तेजस्वी को खुद पर भरोसा नहीं ?
किसी गठबंधन में तीन उपमुख्यमंत्री बनाने की नौबत तभी आती है जब घोर असहमति के बीच सरकार बनाने की मजबूरी हो। यह अक्सर चुनाव के बाद होता है जब किसी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाता। लेकिन तेजस्वी यादव तो चुनाव के पहले ही तीन उप मुख्यमंत्री बनाये जाने का वादा कर रहे हैं। इसका मतलब है कि उन्हें सीट शेयरिंग के लिए भी समझौते करने पड़ रहे हैं। तेजस्वी जब 2020 में 144 सीटों पर लड़ कर केवल 75 जीत सके तो इस बार 120-25 पर लड़ कर क्या हासिल कर लेंगे ? सिर्फ नीतीश सरकार को हटाने के लिए तेजस्वी अपने नुकसान के लिए भी रजामंद हैं। अगर महागठबंधन की सरकार बनी तो क्या मुकेश सहनी और दीपांकर भट्टाचार्य उनको आजादी से काम करने देंगे?
मुकेश सहनी की अति महत्वाकांक्षा
महागठबंधन के सहयोगी दलों में मुकेश सहनी की अति महत्वाकांक्षा जगजाहिर है। उनका कहना है कि बिहार में निषाद समाज की सभी उपजातियों को मिला कर कुल आबादी करीब 9 फीसदी है। वे खुद को निषाद समाज का सबसे बड़ा नेता मानते हैं और आबादी के हिसाब से अपनी भागीदारी चाहते हैं। 2020 में जब भाजपा ने उन्हें चुनाव हारने का बाद भी मंत्री बनाया था तो वे उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी के विस्तार के लिए भाजपा से ही लड़ बैठे थे। इस लड़ाई के कारण उनकी मंत्री पद से विदाई हो गयी थी। अब अगर वे बिहार के डिप्टी सीएम बन गये तो क्या तेजस्वी उन पर नियंत्रण रख पाएंगे ?
अगर माले ने भूमि सुधार पर मोर्चा खोल दिया तो क्या होगा?
अति महत्वाकांक्षा और असंतोष ही किसी गठबंधन सरकार के पतन का कारण होता है। 1967 और 1969 के दौर में इसी तरह कई सरकारें बनीं और गिर गयीं। भाकपा माले आज भले तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने की बात कह रही है। लेकिन जैसे ही सरकार बनी, भूमि सुधार के मसले पर वही सरकार के खिलाफ पहला मोर्चा खोलेगी। विचारधारा के आधार पर भाकपा माले का राजद- कांग्रेस के साथ एक बेमेल गठबंधन है। माले अभी विपक्ष में है। सियासी ताकत के लिए उसे राजद और कांग्रेस की जरूरत है। लेकिन जैसे ही महागठबंधन की सरकार बनी, उसका असल एजेंडा सामने आ जाएगा। तब तेजस्वी यादव एक बेबस मुख्यमंत्री की तरह सरकार चलाएंगे या फिर पद का परित्याग कर देंगे।
3 उप मुख्यमंत्रियों का पहला प्रयोग
2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला था। 224 सदस्यों वाले सदन में बहुमत के लिए 113 का आंकड़ा चाहिए था। येदियुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा 104 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। 7 सीटों की कमी से उसे बहुमत नहीं मिल पाया था। सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण येदियुरप्पा ने सरकार तो बना ली लेकिन बहुमत नहीं होने के कारण दो दिनों में ही इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद जेडीएस (37) और कांग्रेस (78) ने मिल कर सरकार बनायी। जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी सीएम बने।
इस प्रयोग के बाद भी गिर गयी सरकार
14 महीने बाद कुमारस्वामी की सरकार तब अस्थिर हो गयी जब कांग्रेस और जेडीएस के 15 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया। विश्वासमत हारने के बाद कुमारस्वामी को सीएम पद छोड़ना पड़ा। तब भाजपा के येदियुरप्पा ने सरकार बनायी। यह भी अवसरवाद और जोड़ तोड़ से बनी सरकार थी। सरकार चलाने और बचाने की मजबूरी में तीन उपमुख्यमंत्री बनाने पड़े। इन तीन में से एक उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी किसी सदन के सदस्य नहीं थे। राजनीतिक कलह और अशांति के कारण येदियुरप्पा को भी 2021 में सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा। तीन उपमुख्यमंत्रियों का प्रयोग भी येदियुरप्पा सरकार को नहीं बचा सका।
क्या तेजस्वी को खुद पर भरोसा नहीं ?
किसी गठबंधन में तीन उपमुख्यमंत्री बनाने की नौबत तभी आती है जब घोर असहमति के बीच सरकार बनाने की मजबूरी हो। यह अक्सर चुनाव के बाद होता है जब किसी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाता। लेकिन तेजस्वी यादव तो चुनाव के पहले ही तीन उप मुख्यमंत्री बनाये जाने का वादा कर रहे हैं। इसका मतलब है कि उन्हें सीट शेयरिंग के लिए भी समझौते करने पड़ रहे हैं। तेजस्वी जब 2020 में 144 सीटों पर लड़ कर केवल 75 जीत सके तो इस बार 120-25 पर लड़ कर क्या हासिल कर लेंगे ? सिर्फ नीतीश सरकार को हटाने के लिए तेजस्वी अपने नुकसान के लिए भी रजामंद हैं। अगर महागठबंधन की सरकार बनी तो क्या मुकेश सहनी और दीपांकर भट्टाचार्य उनको आजादी से काम करने देंगे?
मुकेश सहनी की अति महत्वाकांक्षा
महागठबंधन के सहयोगी दलों में मुकेश सहनी की अति महत्वाकांक्षा जगजाहिर है। उनका कहना है कि बिहार में निषाद समाज की सभी उपजातियों को मिला कर कुल आबादी करीब 9 फीसदी है। वे खुद को निषाद समाज का सबसे बड़ा नेता मानते हैं और आबादी के हिसाब से अपनी भागीदारी चाहते हैं। 2020 में जब भाजपा ने उन्हें चुनाव हारने का बाद भी मंत्री बनाया था तो वे उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी के विस्तार के लिए भाजपा से ही लड़ बैठे थे। इस लड़ाई के कारण उनकी मंत्री पद से विदाई हो गयी थी। अब अगर वे बिहार के डिप्टी सीएम बन गये तो क्या तेजस्वी उन पर नियंत्रण रख पाएंगे ?
अगर माले ने भूमि सुधार पर मोर्चा खोल दिया तो क्या होगा?
अति महत्वाकांक्षा और असंतोष ही किसी गठबंधन सरकार के पतन का कारण होता है। 1967 और 1969 के दौर में इसी तरह कई सरकारें बनीं और गिर गयीं। भाकपा माले आज भले तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने की बात कह रही है। लेकिन जैसे ही सरकार बनी, भूमि सुधार के मसले पर वही सरकार के खिलाफ पहला मोर्चा खोलेगी। विचारधारा के आधार पर भाकपा माले का राजद- कांग्रेस के साथ एक बेमेल गठबंधन है। माले अभी विपक्ष में है। सियासी ताकत के लिए उसे राजद और कांग्रेस की जरूरत है। लेकिन जैसे ही महागठबंधन की सरकार बनी, उसका असल एजेंडा सामने आ जाएगा। तब तेजस्वी यादव एक बेबस मुख्यमंत्री की तरह सरकार चलाएंगे या फिर पद का परित्याग कर देंगे।
You may also like
ऐसा कोई सगा नहीं जिसको हमने ठगा नहीं.` ये लाइन ब्रांड की टैगलाइन है! जानिए कानपुर के उस लड्डू वाले की कहानी जिसने ठगते-ठगते जीत लिए दिल
हिमाचल प्रदेश : ईडी ने सहायक औषधि नियंत्रक निशांत सरीन को किया गिरफ्तार, भ्रष्टाचार व मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप
शिवाजी पार्क में प्रैक्टिस करते हुए रोहित शर्मा ने अपनी ही लैम्बोर्गिनी पर दे मारा छ्क्का, वायरल हुई वीडियो
चूहा हत्याकांड में फंसा आरोपी! जुर्म कबूला माफी` मांगी फिर भी नहीं मिली राहत – बोला: मुझे क्या पता था जेल पहुंच जाऊंगा
बिहार की जनता समझदार, तेजस्वी यादव के झूठे वादे पर नहीं करेगी एतबार : शाइना एनसी