नई दिल्ली: राहत का बड़ा आंकड़ा आने वाला है। यह महंगाई में गिरावट का अब तक का सबसे निचला स्तर हो सकता है। अक्टूबर महीने की खुदरा महंगाई दर में भारी गिरावट आने का अनुमान है। यह पिछले कम से कम एक दशक का सबसे निचला स्तर हो सकता है। इसका मुख्य कारण खाने-पीने की चीजों के दाम लगातार गिरना है। साथ ही, पिछले साल अक्टूबर में महंगाई दर ज्यादा होने का असर भी इस बार दिख रहा है। रॉयटर्स के अर्थशास्त्रियों के एक सर्वे में यह बात सामने आई है। कुछ जानकारों का मानना है कि सितंबर के आखिर में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स ( जीएसटी ) में की गई कटौती ने भी महंगाई कम करने में मदद की है। वहीं, कुछ का कहना है कि यह महंगाई का सबसे निचला लेवल हो सकता है।
महंगाई तेजी से कम हो रही है। वहीं, हाल के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत की अर्थव्यवस्था अप्रैल-जून तिमाही में करीब 8% की दर से बढ़ी है। ऐसे में उम्मीद है कि रिजर्व बैंक अगले महीने ब्याज दरों में फिर से कटौती कर सकता है। सब्जियों के दाम लगातार छह महीने से सालाना आधार पर दो अंकों में गिर रहे हैं। खाने-पीने की चीजों की महंगाई इसी वजह से काबू में रखा जा सका है। कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (सीपीआई) यानी खुदरा महंगाई दर में इसकी हिस्सेदारी लगभग आधी है।
महंगाई का अनदेखा स्तर
4 से 7 नवंबर के बीच 42 अर्थशास्त्रियों के रॉयटर्स सर्वे के मुताबिक, अक्टूबर में खुदरा महंगाई दर सितंबर के 1.54% से एक फीसदी से ज्यादा गिरकर 0.48% पर पहुंचने के आसार हैं। यह 2012 के आधार वर्ष वाले सीपीआई सीरीज में सबसे निचला स्तर होगा। इसे जनवरी 2015 में शुरू किया गया था। सरकार अगले साल की शुरुआत में इस इंडेक्स का आधार वर्ष बदलकर 2024 कर देगी। 12 नवंबर को जारी होने वाले इन आंकड़ों के लिए अनुमान -0.21% से 2.10% के बीच थे।
बोफा सिक्योरिटीज के अर्थशास्त्री (भारत और आसियान) राहुल बजाजोरिया ने कहा, 'इस महीने बेस इफेक्ट्स सबसे ज्यादा मददगार हैं क्योंकि यह पिछले साल अक्टूबर में सब्जियों की कीमतों में आई तेज बढ़ोतरी को दर्शाता है।' उन्होंने आगे कहा, 'लगातार बेमौसम बारिश के बावजूद भारत में खाद्य महंगाई कंट्रोल में है और हम पूरे देश में स्पष्ट और व्यापक स्तर पर महंगाई में कमी देख रहे हैं।'
बजाजोरिया ने इस वित्तीय वर्ष के लिए अपने महंगाई अनुमानों पर नीचे की ओर जोखिम बताया, 'मुख्य रूप से खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी की कमी को दर्शाते हुए, जो हम आमतौर पर गर्मियों के महीनों के दौरान देखते हैं।'
बजाजोरिया ने यह भी चेतावनी दी कि अर्थशास्त्री कई महीनों से कह रहे हैं कि महंगाई शायद अपने निचले स्तर पर पहुंच गई है। हालांकि, बेमौसम बारिश से सप्लाई पर असर पड़ने लगा है। इसलिए सप्लाई साइड शॉक के उभरने का जोखिम बढ़ गया है। साथ ही, सरकार ने दालों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया है। इससे 2025 में खाद्य कीमतों में कमी लाने वाले कई बड़े स्रोत शायद अपने अंतिम चरण में हैं।
RBI के टारगेट से नीचे बनी हुई है महंगाई
वैसे तो महंगाई फरवरी से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के 4% के लक्ष्य से नीचे बनी हुई है। लेकिन, अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह परिवारों के खर्च के पैटर्न में बदलाव को छुपाता है। 2023-24 के लिए हाउसहोल्ड कंजम्पशन एक्सपेंडिचर सर्वे से पता चला है कि औसत भारतीय परिवार के बजट में खाने-पीने की चीजों का हिस्सा कम हो गया है।
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की मुख्य आर्थिक सलाहकार कनिका पसारिचा ने कहा, 'क्या महंगाई की टोकरी उपभोक्ताओं की खर्च की जरूरतों को सटीक रूप से दर्शाती है? मैं कहूंगी कि यह आंशिक है।' उन्होंने आगे कहा, 'यही कारण है कि सरकार ने कहा है... कि वह एक नई सीपीआई बास्केट एक नए आधार के साथ ला रही है। इसमें शायद सीपीआई टोकरी में खाद्य पदार्थों का भार 40% या उससे कम होगा ताकि उस प्रभाव को सटीक रूप से दर्शाया जा सके।'
कोर इन्फ्लेशन अक्टूबर में सितंबर के अनुमानित 4.50% से घटकर 4.30% होने की उम्मीद थी। इसमें अस्थिर खाद्य और ईंधन कंपोनेंट शामिल नहीं होते और जो अंतर्निहित मांग को बेहतर ढंग से दर्शाता है। सांख्यिकी कार्यालय आधिकारिक कोर इन्फ्लेशन डेटा प्रकाशित नहीं करता है। सर्वे में यह भी दिखाया गया कि थोक मूल्य सूचकांक के अक्टूबर में सालाना आधार पर 0.60% तक गिरने के आसार हैं। सितंबर में इसमें 0.13% की बढ़ोतरी हुई थी।
महंगाई तेजी से कम हो रही है। वहीं, हाल के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत की अर्थव्यवस्था अप्रैल-जून तिमाही में करीब 8% की दर से बढ़ी है। ऐसे में उम्मीद है कि रिजर्व बैंक अगले महीने ब्याज दरों में फिर से कटौती कर सकता है। सब्जियों के दाम लगातार छह महीने से सालाना आधार पर दो अंकों में गिर रहे हैं। खाने-पीने की चीजों की महंगाई इसी वजह से काबू में रखा जा सका है। कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (सीपीआई) यानी खुदरा महंगाई दर में इसकी हिस्सेदारी लगभग आधी है।
महंगाई का अनदेखा स्तर
4 से 7 नवंबर के बीच 42 अर्थशास्त्रियों के रॉयटर्स सर्वे के मुताबिक, अक्टूबर में खुदरा महंगाई दर सितंबर के 1.54% से एक फीसदी से ज्यादा गिरकर 0.48% पर पहुंचने के आसार हैं। यह 2012 के आधार वर्ष वाले सीपीआई सीरीज में सबसे निचला स्तर होगा। इसे जनवरी 2015 में शुरू किया गया था। सरकार अगले साल की शुरुआत में इस इंडेक्स का आधार वर्ष बदलकर 2024 कर देगी। 12 नवंबर को जारी होने वाले इन आंकड़ों के लिए अनुमान -0.21% से 2.10% के बीच थे।
बोफा सिक्योरिटीज के अर्थशास्त्री (भारत और आसियान) राहुल बजाजोरिया ने कहा, 'इस महीने बेस इफेक्ट्स सबसे ज्यादा मददगार हैं क्योंकि यह पिछले साल अक्टूबर में सब्जियों की कीमतों में आई तेज बढ़ोतरी को दर्शाता है।' उन्होंने आगे कहा, 'लगातार बेमौसम बारिश के बावजूद भारत में खाद्य महंगाई कंट्रोल में है और हम पूरे देश में स्पष्ट और व्यापक स्तर पर महंगाई में कमी देख रहे हैं।'
बजाजोरिया ने इस वित्तीय वर्ष के लिए अपने महंगाई अनुमानों पर नीचे की ओर जोखिम बताया, 'मुख्य रूप से खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी की कमी को दर्शाते हुए, जो हम आमतौर पर गर्मियों के महीनों के दौरान देखते हैं।'
बजाजोरिया ने यह भी चेतावनी दी कि अर्थशास्त्री कई महीनों से कह रहे हैं कि महंगाई शायद अपने निचले स्तर पर पहुंच गई है। हालांकि, बेमौसम बारिश से सप्लाई पर असर पड़ने लगा है। इसलिए सप्लाई साइड शॉक के उभरने का जोखिम बढ़ गया है। साथ ही, सरकार ने दालों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया है। इससे 2025 में खाद्य कीमतों में कमी लाने वाले कई बड़े स्रोत शायद अपने अंतिम चरण में हैं।
RBI के टारगेट से नीचे बनी हुई है महंगाई
वैसे तो महंगाई फरवरी से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के 4% के लक्ष्य से नीचे बनी हुई है। लेकिन, अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह परिवारों के खर्च के पैटर्न में बदलाव को छुपाता है। 2023-24 के लिए हाउसहोल्ड कंजम्पशन एक्सपेंडिचर सर्वे से पता चला है कि औसत भारतीय परिवार के बजट में खाने-पीने की चीजों का हिस्सा कम हो गया है।
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया की मुख्य आर्थिक सलाहकार कनिका पसारिचा ने कहा, 'क्या महंगाई की टोकरी उपभोक्ताओं की खर्च की जरूरतों को सटीक रूप से दर्शाती है? मैं कहूंगी कि यह आंशिक है।' उन्होंने आगे कहा, 'यही कारण है कि सरकार ने कहा है... कि वह एक नई सीपीआई बास्केट एक नए आधार के साथ ला रही है। इसमें शायद सीपीआई टोकरी में खाद्य पदार्थों का भार 40% या उससे कम होगा ताकि उस प्रभाव को सटीक रूप से दर्शाया जा सके।'
कोर इन्फ्लेशन अक्टूबर में सितंबर के अनुमानित 4.50% से घटकर 4.30% होने की उम्मीद थी। इसमें अस्थिर खाद्य और ईंधन कंपोनेंट शामिल नहीं होते और जो अंतर्निहित मांग को बेहतर ढंग से दर्शाता है। सांख्यिकी कार्यालय आधिकारिक कोर इन्फ्लेशन डेटा प्रकाशित नहीं करता है। सर्वे में यह भी दिखाया गया कि थोक मूल्य सूचकांक के अक्टूबर में सालाना आधार पर 0.60% तक गिरने के आसार हैं। सितंबर में इसमें 0.13% की बढ़ोतरी हुई थी।
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