भरतपुर: राजस्थान के भरतपुर से एक ऐसा हैरान कर देने वाला साइबर फ्रॉड सामने आया है, जिसने पुलिस और साइबर एजेंसियों की नींद उड़ा दी है। 400 करोड़ रुपये की इस हाईटेक ठगी के पीछे कोई अनपढ़ या गंवार नहीं, बल्कि एक एमबीए मामा और उसका सॉफ्टवेयर इंजीनियर भांजा निकला, जिन्होंने टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर देशभर में हजारों लोगों को चूना लगाया। लेकिन सबसे चौंकाने वाला पहलू तब सामने आया, जब पुलिस ने कागजों में दर्ज कंपनी के मालिकों को पकड़ा,जो असल में एक मजदूर दंपती निकले। सच्चाई जान पुलिस के उड़े होशदरअसल, मीडिया रिपोटर्स के मुताबिक, भरतपुर पुलिस जब ठगी में शामिल एक कंपनी के कागजी मालिकों की लोकेशन ट्रेस कर दिल्ली के मोहन गार्डन इलाके में पहुंची, तो उन्हें वहां एक कमरा मिला। इसमें न तो पंखा था और न ही कोई फर्नीचर। जमीन पर एक चटाई पर पति-पत्नी सो रहे थे। ये वही लोग थे, जिनके नाम पर करोड़ों की कंपनियां पंजीकृत थीं। पुलिस को यह जानकर हैरानी हुई कि ये दंपती न सिर्फ निरक्षर हैं, बल्कि इनके पास खुद का मकान तक नहीं है। पंखा भी नहीं, फर्श पर सोते मिले करोड़ों की कंपनी के मालिकआईजी भरतपुर रेंज राहुल प्रकाश ने बताया कि पुलिस जब ठगी में शामिल कंपनी रुकनेक इंटरप्राइजेज के कागजों में दर्ज मालिकों को गिरफ्तार करने दिल्ली के मोहन गार्डन पहुंची, तो आंखें खुली की खुली रह गईं। पति-पत्नी दिनेश और कुमकुम सिंह एक छोटे से कमरे में बिना पंखे के फर्श पर सोते मिले। पूछताछ में पता चला कि दोनों मजदूरी कर जीवन बसर करते हैं और इतने अनपढ़ हैं कि अपना नाम तक लिखना नहीं जानते। इनके नाम से फर्जी कंपनी बनाकर 400 करोड़ से अधिक की ठगी की गई थी। आईजी भरतपुर रेंज राहुल प्रकाश ने बताया कि जब पुलिस ने छापेमारी की, तो ये लोग एकदम सादगी और गरीबी में मिले। कमरे में न तो पंखा था और न ही कोई सुविधा। जांच में सामने आया कि ये तो सिर्फ मोहरे थे—असल मास्टरमाइंड कोई और था।हर महीने मिलती थी सैलरीपुलिस पूछताछ में यह खुलासा हुआ कि रविंद्र गरीब, अनपढ़ और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को बहला-फुसलाकर उनके दस्तावेज लेकर उनके नाम पर कंपनियां खोलता था। इसके बाद संबधित विभाग से कंपनी रजिस्ट्रेशन, पैन, जीएसटी, टीएएन, सीआईएननंबर बनवाता और कंपनी की सारी गतिविधियों पर खुद नियंत्रण रखता था। नाम के मालिकों को हर महीने मामूली सैलरी दी जाती थी।साजिश का मास्टरमाइंड: एमबीए मामा और इंजीनियर भांजामीडिया रिपोटर्स के मुताबिक, जांच में सामने आया कि असली खेल रविंद्र सिंह और उसका भांजा शशिकांत खेल रहे थे। रविंद्र उत्तर प्रदेश के बलिया जिले का निवासी है और फिलहाल दिल्ली के द्वारका में रहता है। वह एमबीए पास है और पूरे नेटवर्क को संचालित करता था। उसका भांजा शशिकांत एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, जो फिलहाल फरार है। पुलिस ने रविंद्र, दिनेश और कुमकुम को दिल्ली से गिरफ्तार कर भरतपुर लाया है। पूछताछ में खुलासा हुआ कि दिनेश और कुमकुम के नाम पर सिर्फ कंपनियां खोली गईं थी, जिनका संचालन और लेन-देन शशिकांत करता था।400 करोड़ का नहीं, 1000 करोड़ तक पहुंच सकता है घोटालाअब तक की जांच में सामने आया है कि ठग गिरोह ने ऑनलाइन गेमिंग और इन्वेस्टमेंट ऐप्स की आड़ में देशभर में करीब 4 हजार लोगों को निशाना बनाया। कई पीडि़तों ने हेल्पलाइन नंबर 1930 पर शिकायतें दर्ज कराईं। सिर्फ फिनो पेमेंट बैंक से ही 3000 से अधिक शिकायतें आई थीं, जो अब 4000 के पार जा चुकी हैं। पुलिस को अंदेशा है कि ठगी की राशि 1000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकती है।फर्जी कंपनियों का मकडज़ाल, एक साल में 100 कंपनियांआईजी राहुल प्रकाश के अनुसार, ठग गिरोह ने चार राज्यों में रजिस्ट्रेशन कराई गई फर्जी कंपनियों का इस्तेमाल किया। जिनमें रुकनेक इंटरप्राइजेज (हरियाणा), सेलवा कृष्णा आईटी सोल्यूशंस (तमिलनाडु), एसकेआरसी इन्फोटेक (महाराष्ट्र) और नित्यश्री मैनपावर (तमिलनाडु) शामिल हैं। इन सभी कंपनियों के बैंक खाते फिलहाल फ्रीज कर दिए गए हैं, जिनमें लगभग 4 करोड़ रुपये मिले हैं। आईजी राहुल प्रकाश के अनुसार, रविंद्र गरीब और अनपढ़ लोगों को लालच देकर उनके नाम से कंपनी खोलता, दस्तावेज जुटाता और उन्हें रजिस्टर्ड कराता। बदले में हर महीने सैलरी देता। जैसे ही कंपनी पर शिकायतें आतीं, वह कंपनी बंद कर नई कंपनी खोल देता। इसी तरह एक साल में 100 से अधिक कंपनियां सामने आईं।ऑनलाइन बेटिंग और इन्वेस्टमेंट स्कीम के जाल में फंसते थे लोगगैंग सोशल मीडिया, ईमेल और मैसेज के जरिए फर्जी गेमिंग और इन्वेस्टमेंट ऐप्स के लिंक भेजता था। शुरुआत में लोगों को मामूली रिटर्न देकर विश्वास जीतता और फिर बड़ी रकम निवेश कराने के बाद पैसे हड़प लेता। जिनके पास पैसा नहीं होता, उन्हें रविंद्र खुद स्पॉन्सर करता और बदले में उनकी बैंक डिटेल्स लेता।फर्जी सिम और पेमेंट गेटवे से ट्रांजैक्शन की चेनपुलिस की जांच में सामने आया है कि आरोपी फर्जी सिम कार्ड्स और डिजिटल पेमेंट गेटवे जैसे फिनो पेमेंट्स, फोनपे, बकबॉक्स, एबुनडान्स पे, पेवाइज और ट्राइपे पर मर्चेंट अकाउंट का इस्तेमाल करते थे। इस पूरे नेटवर्क को सीए और टेक एक्सपर्ट्स की मदद से ऑपरेट किया जा रहा था।आईवाईसी की तकनीकी मदद से हुआ खुलासाकेंद्रीय साइबर एजेंसी आईवाईसी की मदद से पुलिस ने इस हाईटेक रैकेट को ट्रेस किया। डायरेक्टर राजेश कुमार की तकनीकी सहायता से जैसे-जैसे ट्रांजैक्शन की परतें खुलती गईं, एक-एक कर गिरोह के सदस्य पुलिस के हत्थे चढ़ते गए।
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