लेखक: चंद्रभूषण
एयर कंडीशनर और फ्रिज में भरने वाली गैस से बना ओजोन होल भर रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि 2066 तक ओजोन परत पूरी तरह ठीक हो जाएगी, लाखों लोग स्किन कैंसर से बच जाएंगे। लेकिन अब दूसरा संकट बढ़ रहा है। इस बार वजह है इन्हीं AC और फ्रिज में लगने वाला कूलेंट। भारत में हम इन्हें अपने रूम एयर-कंडीशनरों (RACs) से बेधड़क लीक कर रहे हैं।
ठंडक का उफान: RACs की बिक्री 2020 से हर साल 15-20% की दर से बढ़ रही है। इस समय भारत में तकरीबन 7 करोड़ RACs हैं। iFOREST के हालिया राष्ट्रीय घरेलू सर्वे के मुताबिक AC अब सिर्फ़ अमीरों तक सीमित नहीं है यह मिडल और लोअर इनकम घरों में भी पहुंच चुका है। सर्वे में दिखा कि अधिकतर भारतीय अपने AC में 22-26C तापमान चुनते हैं, न कि बेहद कम।
कड़वी सचाई: Ac की गैस रिफिलिंग हमारी जेब को भी नुकसान पहुंचा रही है 15 साल से पुराने तकरीबन 80% AC हर साल रिफिल होते हैं। भारत के लगभग 40% AC हर साल रिफिल होते हैं। AC को सिर्फ 5 साल में एक बार रिफिल कराने की जगह भारत में यह हर 2-3 साल में हो रहा है। सिर्फ 2024 में भारत के ACs ने 3.2 करोड़ किलो गैस लील ली। यही सिलसिला चलता रहा तो 2035 तक रिफिल का खर्च बढ़कर 27,500 करोड़ रुपये हो जाएगा।
सांस का सवाल: भारत में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला HFC-32, C से 675 गुना अधिक ताकतवर है। 2024 में AC से लीक हुए गैस से ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन 5.2 करोड़ टन CO के बराबर हुआ । 2035 तक यह 8.4 करोड़ टन हो जाएगा। 2035 तक ACs से कुल उत्सर्जन दोगुना होकर 32.9 करोड़ टन हो जाएगा, और वो भारत का सबसे बड़ा GHG छोड़ने वाला घरेलू उपकरण बन जाएगा।
दंतहीन नीतियां: इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान का मकसद 2037-38 तक गैस की मांग 25-30% कम करना है, लेकिन इसके लिए मजबूत नियम नहीं हैं। संशोधित ई-वेस्ट (मैनेजमेंट) नियम, 2023 में प्रावधान तो है, लेकिन इसका लागू होना बेहद कमजोर है। नतीजा यह है कि सर्विसिंग के दौरान लीक रोकने का कोई सिस्टम नहीं, रिफिल की निगरानी नहीं और पुराने AC के निपटान की कोई जवाबदेही नहीं।
हल मुमकिन: गैस लीक का संकट बेहद गंभीर है, लेकिन यह सुलझाया जा सकता है। भारत को एक व्यापक लाइफ साइकल गैस मैनेजमेंट (LRM ) नियम बनाना होगा, जिसमें गैस की भराई से लेकर सर्विसिंग और निपटान तक सब शामिल हो। AC बनाने वाली कंपनियों को EPR ढांचे में जिम्मेदार बनाना होगा ताकि वे गैस को वापस लें, रीसाइकल करें और सुरक्षित रूप से नष्ट करें।
(लेखक iForest के CEO हैं)
एयर कंडीशनर और फ्रिज में भरने वाली गैस से बना ओजोन होल भर रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि 2066 तक ओजोन परत पूरी तरह ठीक हो जाएगी, लाखों लोग स्किन कैंसर से बच जाएंगे। लेकिन अब दूसरा संकट बढ़ रहा है। इस बार वजह है इन्हीं AC और फ्रिज में लगने वाला कूलेंट। भारत में हम इन्हें अपने रूम एयर-कंडीशनरों (RACs) से बेधड़क लीक कर रहे हैं।
ठंडक का उफान: RACs की बिक्री 2020 से हर साल 15-20% की दर से बढ़ रही है। इस समय भारत में तकरीबन 7 करोड़ RACs हैं। iFOREST के हालिया राष्ट्रीय घरेलू सर्वे के मुताबिक AC अब सिर्फ़ अमीरों तक सीमित नहीं है यह मिडल और लोअर इनकम घरों में भी पहुंच चुका है। सर्वे में दिखा कि अधिकतर भारतीय अपने AC में 22-26C तापमान चुनते हैं, न कि बेहद कम।
कड़वी सचाई: Ac की गैस रिफिलिंग हमारी जेब को भी नुकसान पहुंचा रही है 15 साल से पुराने तकरीबन 80% AC हर साल रिफिल होते हैं। भारत के लगभग 40% AC हर साल रिफिल होते हैं। AC को सिर्फ 5 साल में एक बार रिफिल कराने की जगह भारत में यह हर 2-3 साल में हो रहा है। सिर्फ 2024 में भारत के ACs ने 3.2 करोड़ किलो गैस लील ली। यही सिलसिला चलता रहा तो 2035 तक रिफिल का खर्च बढ़कर 27,500 करोड़ रुपये हो जाएगा।
सांस का सवाल: भारत में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला HFC-32, C से 675 गुना अधिक ताकतवर है। 2024 में AC से लीक हुए गैस से ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन 5.2 करोड़ टन CO के बराबर हुआ । 2035 तक यह 8.4 करोड़ टन हो जाएगा। 2035 तक ACs से कुल उत्सर्जन दोगुना होकर 32.9 करोड़ टन हो जाएगा, और वो भारत का सबसे बड़ा GHG छोड़ने वाला घरेलू उपकरण बन जाएगा।
दंतहीन नीतियां: इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान का मकसद 2037-38 तक गैस की मांग 25-30% कम करना है, लेकिन इसके लिए मजबूत नियम नहीं हैं। संशोधित ई-वेस्ट (मैनेजमेंट) नियम, 2023 में प्रावधान तो है, लेकिन इसका लागू होना बेहद कमजोर है। नतीजा यह है कि सर्विसिंग के दौरान लीक रोकने का कोई सिस्टम नहीं, रिफिल की निगरानी नहीं और पुराने AC के निपटान की कोई जवाबदेही नहीं।
हल मुमकिन: गैस लीक का संकट बेहद गंभीर है, लेकिन यह सुलझाया जा सकता है। भारत को एक व्यापक लाइफ साइकल गैस मैनेजमेंट (LRM ) नियम बनाना होगा, जिसमें गैस की भराई से लेकर सर्विसिंग और निपटान तक सब शामिल हो। AC बनाने वाली कंपनियों को EPR ढांचे में जिम्मेदार बनाना होगा ताकि वे गैस को वापस लें, रीसाइकल करें और सुरक्षित रूप से नष्ट करें।
(लेखक iForest के CEO हैं)
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