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आरोप तय करने में होने वाली देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने क्यों जताई चिंता, पैन इंडिया अहम निर्देश जारी करने के दिए संकेत

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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मुकदमों में आरोप तय करने में अत्यधिक देरी पर गहरी चिंता व्यक्त की। वहीं भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 251(बी) में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जिन मामलों की सुनवाई विशेष रूप से सेशन कोर्ट की ओर से की जानी है, उनमें पहली सुनवाई के 60 दिनों के भीतर आरोप तय किए जाने चाहिए। अदालत ने इस बारे में पैन इंडिया निर्देश जारी करने का संकेत दिया है ताकि समयसीमा में आरोप तय किए जा सकें।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपनी टिप्पणी में कहा है कि इस तरह की देरी आपराधिक मामलों की कार्यवाही (प्रोसिडिंग्स) में ठहराव के प्रमुख कारणों में से एक है। अदालत ने कहा कि उसका “यह विचार है कि पूरे देश में कुछ निर्देश जारी किए जाने चाहिए ताकि इस वैधानिक आदेश का पालन सुनिश्चित हो सके।


अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा से अनुरोध किया कि वे इस मामले में अमाइकस क्यूरी (कोर्ट सलाहकार) के रूप में सहायता करें। कोर्ट ने भारत के अटॉर्नी जनरल से भी सहायता मांगी, क्योंकि वह इस तरह की देरी से निपटने के लिए देशव्यापी निर्देश जारी करने पर विचार कर रही है। जस्टिस अरविंद कुमार की अगुवाई वाली बेंच एक आपराधिक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता के वकील ने यह मुद्दा उठाया कि अभियुक्त को दो वर्ष से हिरासत में रखा गया है, फिर भी अब तक आरोप तय नहीं किए गए।


ऐसे मामलों में लगातार देरी क्यों हो रही: SC
इस पर अदालत ने पूछा कि नागरिक और आपराधिक दोनों प्रकार के मामलों में लगातार देरी क्यों हो रही है। उन्होंने कहा “आरोप तय करने में वर्षों क्यों लगते हैं? दीवानी मामलों में मुद्दे तय नहीं होते, और आपराधिक मामलों में आरोप तय नहीं होते। हमें यह जानना है कि कठिनाई क्या है, अन्यथा हम पूरे देश के सभी न्यायालयों के लिए निर्देश जारी करेंगे। हम ऐसा करने का प्रस्ताव रखते हैं। बिहार राज्य के वकील ने कुछ दिशा-निर्देश जारी करने की वकालत की, यह कहते हुए कि आरोपपत्र दाखिल करने और आरोप तय करने के बीच अक्सर काफी देरी होती है।

वहीं महाराष्ट्र राज्य के वकील ने न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ की ओर से पारित एक आदेश का उल्लेख किया, जिसमें महाराष्ट्र में 649 मामलों में आरोप तय न होने की “चौंकाने वाली स्थिति” पर चिंता व्यक्त की गई थी। उन्होंने कहा कि इस संबंध में जिला अदालतों से जानकारी मांगी गई थी। इस पर न्यायमूर्ति कुमार ने कहा कि वे जिला अदालतों से जानकारी आने की प्रतीक्षा नहीं करेंगे, बल्कि पूरे भारत में एक साथ निर्देश जारी करेंगे।

अदालत ने देशव्यापी दिशानिर्देश जारी करने के इरादे से आदेश पारित किया। आदेश में कहा गया है कि याचिकाकर्ता, जिस पर बीएनएस की धारा 309(5), 109(1), 103, 105 और आर्म्स एक्ट की धारा 27 के तहत अपराध का आरोप है, नियमित ज़मानत की मांग कर रहा है, यह कहते हुए कि वह निर्दोष है और झूठा फँसाया गया है। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि वह 10 अगस्त 2024 से हिरासत में है। वकील ने कहा कि आरोपपत्र यानी चार्जशीट दाखिल हो चुका है और सभी अभियुक्त न्यायिक हिरासत में हैं, फिर भी कोई उचित कारण बताए बिना आरोप तय नहीं किए गए।

अदालत ने कहा कि हम वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा से अनुरोध करते हैं कि वे अदालत की सहायता करें। हम याचिकाकर्ता के वकील को यह अनुमति देते हैं कि वे याचिका और वर्तमान आदेश की प्रति अटॉर्नी जनरल को दें, क्योंकि हम आवश्यकता पड़ने पर पूरे देश के सभी न्यायालयों के लिए निर्देश जारी करने का प्रस्ताव रखते हैं। मामले की सुनवाई दो हफ्ते बाद के लिए लिस्ट करने का आदेश दिया गया है।
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