बस एक रील और... बस एक और... और फिर एक और... यही करते-करते कब आधा-एक घंटा बीत जाता है,पता ही नहीं चलता. सुबह उठते ही सबसे पहले फ़ोन पर रील्स देखना,रात को सोने से पहले आख़िरी काम भी यही. अगर आपकी भी यही आदत बन चुकी है,तो रुककर सोचने का वक़्त आ गया है. ये छोटी-छोटी,मज़ेदार दिखने वाली वीडियोज़ चुपके-से हमारी दिमागी शांति को दीमक की तरह खा रही हैं.सिर्फ़ टाइम पास नहीं,दिमाग पर सीधा असरहम सोचते हैं कि रील्स देखने में क्या हर्ज़ है?थोड़ा मनोरंजन ही तो है. लेकिन असल में ये सिर्फ़ मनोरंजन नहीं,बल्कि हमारे दिमाग के साथ एक बहुत बड़ा खेल है. जब हम कोई मज़ेदार रील देखते हैं,तो हमारे दिमाग में'डोपामिन'नाम का एक केमिकल रिलीज़ होता है. ये वही केमिकल है जो हमें खुशी और संतुष्टि का एहसास कराता है. हमें इसकी आदत पड़ जाती है और हमारा दिमाग बार-बार उसी खुशी को पाने के लिए और रील्स देखने की मांग करता है. यहीं से एक ऐसा नशा शुरू होता है,जो सिगरेट या शराब के नशे से कम नहीं है.कैसे हमारी ज़िंदगी पर पड़ रहा है इसका असर?आप कुछ भी याद नहीं रख पा रहे हैं:क्या आपके साथ ऐसा होता है कि आप कोई चीज़ कहीं रखकर भूल जाते हैं?या कोई ज़रूरी बात दिमाग से निकल जाती है?इसकी एक बड़ी वजह लगातार रील्स देखना हो सकता है. जब हम जल्दी-जल्दी एक के बाद एक वीडियो देखते हैं,तो हमारा दिमाग किसी भी एक चीज़ पर ध्यान लगाना भूल जाता है. हमारी याद रखने की और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता धीरे-धीरे कमज़ोर होने लगती है.हमेशा चिड़चिड़ा और बेचैन रहना:अगर आपको फ़ोन पर रील्स देखने को न मिले,तो क्या आपको बेचैनी या गुस्सा आने लगता है?अगर हाँ,तो यह एक ख़तरनाक संकेत है. यह दिखाता है कि आप मानसिक रूप से रील्स पर कितना निर्भर हो चुके हैं.असली दुनिया से कट जाना:रील्स की चमक-दमक वाली दुनिया हमें इतनी अच्छी लगने लगती है कि हमें अपनी असली ज़िंदगी और अपने आस-पास के लोग बोरिंग लगने लगते हैं. हम दोस्तों और परिवार के साथ बैठकर भी फ़ोन में घुसे रहते हैं. यह आदत हमें अकेला कर रही है और हमारे रिश्तों को भी खोखला बना रही है.हमेशा दूसरों से अपनी तुलना करना:रील्स पर हम लोगों को घूमते-फिरते,अच्छी-अच्छी जगहों पर खाते-पीते और हमेशा ख़ुश देखते हैं. उनकीperfekteज़िंदगी देखकर हमें अपनी ज़िंदगी में कमियां नज़र आने लगती हैं. हम हर बात पर खुद की तुलना दूसरों से करने लगते हैं,जिससे हमारे अंदर एक जलन और असंतोष की भावना पैदा हो जाती है,जो धीरे-धीरे डिप्रेशन का रूप ले सकती है.तो क्या करें?क्या रील्स देखना छोड़ दें?एकदम से कुछ भी छोड़ना मुमकिन नहीं है,लेकिन अपनी आदत को सुधारना हमारे ही हाथ में है.एक टाइम सेट करें:तय करें कि आप दिन में सिर्फ़15या20मिनट ही रील्स देखेंगे. इसके लिए आप अपने फ़ोन में टाइमर भी लगा सकते हैं.नोटिफ़िकेशन बंद कर दें:सोशल मीडिया ऐप्स के नोटिफ़िकेशन बंद रखें ताकि आपका ध्यान बार-बार फ़ोन की तरफ़ न जाए.असली ज़िंदगी में ख़ुशी ढूंढें:फ़ोन को किनारे रखकर बाहर निकलें,दोस्तों से मिलें,कोई किताब पढ़ें या अपनी कोई हॉबी पूरी करें. असली ख़ुशी आपको फ़ोन की स्क्रीन पर नहीं,बल्कि असल दुनिया में ही मिलेगी.याद रखिए,टेक्नोलॉजी हमारे फ़ायदे के लिए बनी है,हमें अपना ग़ुलाम बनाने के लिए नहीं. इसका कंट्रोल अपने हाथ में रखिए,नहीं तो एक दिन यह आपकी ज़िंदगी का कंट्रोल अपने हाथ में ले लेगी.
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