बिहार की राजनीति में वंशवाद और पारिवारिक विरासत का सिलसिला लगातार गहराता जा रहा है। इसका ताज़ा उदाहरण पूर्व मंत्री बालेश्वर राम और रामजतन पासवान के परिवार से सामने आया है। कभी अलग-अलग राजनीतिक दलों में रहते हुए एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी जंग लड़ने वाले ये दोनों परिवार अब एक ही दल की छतरी के नीचे आ गए हैं। इस बदलाव से स्थानीय राजनीति में हलचल तेज हो गई है और समीकरण पूरी तरह बदलते दिख रहे हैं।
तीसरी पीढ़ी की एंट्रीपूर्व मंत्री बालेश्वर राम और रामजतन पासवान की राजनीतिक विरासत अब उनकी तीसरी पीढ़ी तक पहुँच गई है। बिहार सरकार में मंत्री रहे महेश्वर हजारी के पुत्र सन्नी हजारी और डॉ. अशोक कुमार के पुत्र अतिरेक अब सक्रिय राजनीति में उतर चुके हैं। इन दोनों युवा चेहरों को अपने-अपने परिवार की राजनीतिक ताकत और जनाधार का सहारा है, जिसके चलते स्थानीय स्तर पर उनका कद तेजी से बढ़ रहा है।
कभी विरोधी, अब सहयोगीदिलचस्प बात यह है कि जिन परिवारों ने कभी अलग-अलग दलों के झंडे तले रहकर राजनीतिक लड़ाइयाँ लड़ीं, आज वही परिवार एकजुट होकर राजनीति कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस एकता का सीधा असर आगामी चुनावों पर पड़ेगा। कार्यकर्ताओं और समर्थकों में भी इस बदलाव को लेकर उत्सुकता है कि यह तालमेल कितना प्रभावी साबित होगा।
बदलते समीकरणों से गर्माई सियासतस्थानीय राजनीति में इस घटनाक्रम ने नई चर्चा छेड़ दी है। विरोधी दलों का कहना है कि यह केवल "सत्ता के लालच" का खेल है, वहीं समर्थकों का तर्क है कि अनुभव और युवा नेतृत्व का संगम क्षेत्र के विकास में मदद करेगा।
राजनीति के जानकार मानते हैं कि तीसरी पीढ़ी की सक्रियता के कारण इलाके में नेतृत्व को लेकर नई होड़ शुरू होगी और इससे मतदाताओं को भी नए विकल्प मिलेंगे।
सन्नी हजारी और अतिरेक जैसे युवा नेताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के साथ-साथ जनता का भरोसा जीतना है। वे किस तरह से जनता की अपेक्षाओं पर खरे उतरते हैं और अपनी स्वतंत्र पहचान बनाते हैं, यह आने वाले समय में स्पष्ट होगा।
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