निवाड़ी, 23 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . साहिल अब नहीं रहा. उसका परिवार सदमे में है, गाँव में मातम पसरा है. पिता की आँखों में आज भी यह सवाल है; “अगर स्कूल ने बेटे की गलती को माफ कर दिया होता, तो क्या वह जिंदा होता?”
दरअसल, Madhya Pradesh के निवाड़ी जिले के पृथ्वीपुर नगर में घटित एक दर्दनाक घटना ने प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था, निजी स्कूलों की अनुशासन नीति और बाल-अधिकारों की संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. महज 14 वर्ष का छात्र साहिल यादव जो अल्फोंसा (चर्च, मिशनरी) हाई स्कूल, पृथ्वीपुर में कक्षा 10 का विद्यार्थी था, पटाखा जलाने की मामूली गलती के बाद स्कूल से निलंबित (सस्पेंड) कर दिया गया. कुछ ही दिनों में वह मानसिक दबाव, शर्म और अपमान के बोझ तले ऐसा टूट गया कि 13 अक्टूबर को उसने आत्महत्या कर ली. अब इस पूरे मामले को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने गंभीरता से लिया है और राज्य शासन को विस्तृत जांच रिपोर्ट दो सप्ताह में प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं.
आयोग ने इस घटना को “मानव अधिकारों के प्रथम दृष्टया उल्लंघन” के रूप में स्वीकार करते हुए इसे मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 12 के अंतर्गत संज्ञान में लिया है. इस संबंध में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग सदस्य प्रियंक कानूनगो के माध्यम से जारी पत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह मामला 14 वर्षीय छात्र साहिल यादव की आत्महत्या से जुड़ा है. आयोग के समक्ष यह शिकायत 16 अक्टूबर को प्रस्तुत की गई थी, जिसमें छात्र के पिता रामकुमार यादव ने आरोप लगाया कि उनके पुत्र को स्कूल के फादर व प्रबंधन ने शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया.
आयोग ने आदेश दिया है कि “जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) और Superintendent of Police (एसपी), निवाड़ी को निर्देशित किया जाता है कि वे शिकायत में लगाए गए आरोपों की निष्पक्ष जांच कराएं और दो सप्ताह के भीतर विस्तृत ‘विस्तृत जांच रिपोर्ट (एटीआर)’ आयोग को भेजें.” इस नोटिस की प्रति मध्यप्रदेश शासन, शिक्षा विभाग और पृथ्वीपुर थाना पुलिस को भी भेजी गई है. आयोग ने यह भी कहा कि रिपोर्ट की एक प्रति ईमेल के माध्यम से bench-mpk@gov.in पर भी भेजी जाए.
पटाखे से शुरू हुई कहानी, त्रासदी में बदल गई ज़िंदगी
उल्लेखनीय है कि मामले की शुरुआत चार अक्टूबर 2025 को हुई, जब साहिल यादव ने स्कूल की कक्षा में मजाक में एक छोटा पटाखा फोड़ दिया. स्कूल प्रबंधन ने इसे गंभीर अनुशासनहीनता मानते हुए तुरंत कार्रवाई की और छात्र को 15 दिनों के लिए निलंबित (सस्पेंड) कर दिया. साहिल ने अपनी गलती स्वीकार कर ली थी, और उसके पिता रामकुमार यादव ने स्कूल जाकर माफी मांगी. उन्होंने फादर से हाथ जोड़कर विनती की कि बेटे को माफ कर दिया जाए, क्योंकि वह बोर्ड Examination की तैयारी में है, लेकिन स्कूल प्रबंधन अपनी बात पर अड़ा रहा और किसी प्रकार की रियायत देने से इनकार कर दिया.
रामकुमार बताते हैं, “मैंने बहुत हाथ जोड़े, कहा कि गलती हो गई है, आगे ऐसा नहीं होगा. लेकिन उन्होंने बेटे को 15 दिन के लिए निकाल दिया. बेटे का चेहरा उतर गया था, वह गुमसुम रहने लगा था. उसी रात वह खेत गया और वापस नहीं लौटा. बाद में गांव के बाहर एक पेड़ पर उसका शव लटका मिला.”
पुलिस जांच में भी सामने आई प्रताड़ना की बात
इस दर्दनाक घटना के बाद पुलिस ने पंचनामा और पोस्टमार्टम की प्रक्रिया पूरी कर मर्ग कायम किया. जांच के बाद पृथ्वीपुर थाना पुलिस ने अल्फोंसा स्कूल के संचालक फादर रॉबिन पर बीएनएस धारा 107 के तहत मामला दर्ज किया है. पुलिस विवेचना में पाया गया कि फादर द्वारा छात्र को मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया था, जिसके कारण उसने आत्महत्या जैसा कदम उठाया.
गुस्से में सड़कों पर उतरे छात्र संगठन
साहिल की आत्महत्या के बाद निवाड़ी जिले में छात्र संगठनों और सामाजिक समूहों में आक्रोश फैल गया. अखिल Indian विद्यार्थी परिषद ने 17 अक्टूबर को पृथ्वीपुर में विशाल रैली निकाली. कार्यकर्ताओं ने “साहिल को न्याय दो” और “फादर संतोष को गिरफ्तार करो” जैसे नारे लगाए. रैली अंबेडकर चौक से शुरू होकर एसडीएम कार्यालय तक पहुंची, जहाँ एबीवीपी के नगर मंत्री राजेश दांगी के नेतृत्व में ज्ञापन सौंपा गया.
ज्ञापन में मांग की गई है कि अल्फोंसा विद्यालय की मान्यता तत्काल रद्द की जाए. फादर संतोष ए.के. के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया जाए. पूरे विद्यालय प्रबंधन की जांच शिक्षा विभाग से कराई जाए. एबीवीपी ने जिला प्रशासन को चार दिन का अल्टीमेटम दिया है, चेतावनी दी है कि यदि कार्रवाई नहीं हुई तो “अल्फोंसा स्कूल का घेराव” और “प्रदेशव्यापी आंदोलन” किया जाएगा.
मानव अधिकार आयोग का दृष्टिकोण : शिक्षा संस्थानों में संवेदनशीलता जरूरी
दूसरी ओर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने अपने नोटिस में यह स्पष्ट किया है कि यह मामला “प्रथम दृष्टया मानव अधिकारों के उल्लंघन” जैसा प्रतीत होता है. आयोग ने कहा कि शिक्षा संस्थान बच्चों के अनुशासन के साथ-साथ उनके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के भी उत्तरदायी हैं. ज्ञात हो कि मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 12 और 13 के तहत आयोग को दीवानी न्यायालय जैसी शक्तियाँ प्राप्त हैं, और वह ऐसे मामलों में प्रशासनिक अधिकारियों को जवाबदेह ठहराने का अधिकार रखता है.
Madhya Pradesh में शिक्षा व्यवस्था पर सवाल
यह घटना उस समय आई है जब प्रदेश के कई जिलों में शिक्षकों द्वारा बच्चों से दुर्व्यवहार की घटनाएँ लगातार सामने आ रही हैं. कुछ दिन पहले धार जिले के मनावर में आठवीं के छात्र की पिटाई और नर्मदापुरम में छात्राओं के साथ दुर्व्यवहार के मामले चर्चा में रहे. साहिल की मौत ने यह सवाल फिर खड़ा किया है कि क्या अनुशासन लागू करने के नाम पर विद्यालयों में बच्चों के मानसिक अधिकारों की अनदेखी हो रही है? बाल विशेषज्ञों के अनुसार, किशोरावस्था में सार्वजनिक अपमान, निष्कासन या सस्पेंशन जैसी सजाएं गंभीर मानसिक प्रभाव छोड़ती हैं.
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(Udaipur Kiran) / डॉ. मयंक चतुर्वेदी
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