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संयुक्त राष्ट्र की बैठक में लीबिया से प्रवासी हिरासत केंद्र बंद करने की मांग, मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर चिंता

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जिनेवा, 12 नवम्बर (Udaipur Kiran) . संयुक्त राष्ट्र की एक अहम बैठक में मंगलवार को कई देशों ने लीबिया से प्रवासी हिरासत केंद्रों को तत्काल बंद करने की अपील की है. मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि इन केंद्रों में प्रवासियों और शरणार्थियों के साथ यातना, हिंसा और हत्या जैसी अमानवीय घटनाएं हो रही हैं.

ब्रिटेन, स्पेन, नॉर्वे और सिएरा लियोन समेत कई देशों ने जिनेवा में आयोजित इस बैठक में लीबिया में प्रवासियों के साथ हो रहे अत्याचारों और दुरुपयोग पर गहरी चिंता जताई. अफ्रीका के कई देशों से यूरोप की ओर भागने वाले प्रवासियों के लिए लीबिया एक प्रमुख ट्रांजिट रूट बना हुआ है.

रिपोर्टों के अनुसार, कई प्रवासियों को तस्करों द्वारा गोदामों में बंद कर रखा गया, जहां उन्हें हिंसा और जबरन वसूली का सामना करना पड़ा. नॉर्वे के राजदूत टोरमोड एंड्रेसन ने लीबिया से कमजोर प्रवासियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और मनमाने ढंग से हिरासत में लेने की प्रथा खत्म करने की मांग की.

ब्रिटेन की मानवाधिकार राजदूत एलेनोर सैंडर्स ने भी इन मांगों का समर्थन किया और संयुक्त राष्ट्र व अन्य एजेंसियों को सामूहिक कब्रों तक बिना प्रतिबंध पहुंच की अनुमति देने का आग्रह किया. इस साल की शुरुआत में मिली सामूहिक कब्रों से निकले शवों पर गोली लगने के निशान पाए गए थे, जिसे एक यूएन एजेंसी ने गंभीर बताया है.

मानवाधिकार समूहों ने लीबियाई सरकार को लिखे खुले पत्र में कहा कि देश में सशस्त्र समूह बिना किसी भय के काम कर रहे हैं, न्यायालयों को बाधित कर रहे हैं और व्यापक मानवाधिकार हनन कर रहे हैं.

बैठक में लीबिया की ओर से कार्यवाहक विदेश मंत्री एलताहेर सालेम एम. एलबौर ने माना कि प्रवासियों की स्थिति ने देश पर भारी बोझ डाला है. उन्होंने कहा, “मैं यहां अपने देश की स्थिति को आदर्श बताने नहीं आया हूं, बल्कि यह बताने आया हूं कि कठिन हालात के बावजूद हम मानवाधिकारों के सम्मान के लिए प्रयासरत हैं.”

उन्होंने बताया कि लीबिया ने अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (आईसीसी) के अधिकार क्षेत्र को स्वीकार किया है और हिरासत केंद्रों की स्थिति सुधारने के लिए एक नई संयुक्त समिति का गठन किया है.

यह समीक्षा संयुक्त राष्ट्र की यूनिवर्सल पीरियाडिक रिव्यू (यूपीआर) प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसमें हर कुछ वर्षों में सभी 193 सदस्य देशों के मानवाधिकार रिकॉर्ड की समीक्षा की जाती है और सुधारों की सिफारिशें दी जाती हैं.

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(Udaipur Kiran) / आकाश कुमार राय

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