धनबाद, 22 अप्रैल . जमशेदपुर पश्चिमी के विधायक और दामोदर बचाओ आंदोलन के प्रणेता सरयू राय ने कहा है कि नदियों को बांधा नहीं जाना चाहिए. उन्हें बांधने से उन पर डैम बनाने से पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है. अब भारत समेत दुनिया भर में नदियों को बांधने पर जबरदस्त विरोध किया जा रहा है. सरयू राय मंगलवार को आईआईटी (आईएसएम), धनबाद में विश्व पृथ्वी दिवस पर आईआईटी (आईएसएम), युगांतर भारती, मेल-हब के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे.
सरयू राय ने कहा कि नदियों पर डैम बनाने के दुष्परिणाम धीरे-धीरे अब दुनिया के सामने आने लगे हैं और यही वजह है कि अब इनका विरोध दुनिया भर में हो रहा है. उन्होंने आईआईटी, आईएसएम जैसे संस्थान को प्रकृति के पैथोलॉजिकल टेस्टिंग सेंटर की तरह बताया, जहां पर मानवीय गतिविधियों से पृथ्वी और पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का पता चलता है. राय ने कहा कि पर्यावरण को सबसे ज़्यादा खतरा मानवीय गतिविधियों से ही हो रहा है. यह इंसान ही है, जिसने प्रकृति का अपने हित के लिए दोहन किया और उसकी हालत खराब कर दी.
युगांतर भारती और आईआईटी-आईएसएम में एमओयू
इसके पूर्व झारखंड में पर्यावरण और जैव विविधता के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में संयुक्त रूप से प्रयास करने के लिए स्वयंसेवी संस्था युगांतर भारती और आईआईटी-आईएसएम धनबाद के बीच एमओयू हुआ. युगांतर भारती के अध्यक्ष अंशुल शरण और आईआईटी-आईएसएम धनबाद की तरफ से प्रोफेसर अंशुमाली ने एमओयू किया. इस ओमओयू का मकसद जैव विविधता के संरक्षण, शैक्षणिक जानकारी और रुचि की सामग्रियों के बारे में सूचना का आदान-प्रदान, संयुक्त वृक्षारोपण कार्यक्रम, पर्यावरण मुद्दों पर सेमिनार, कार्यशाला, जागरूकता कार्यक्रम, व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना और स्वरोजगार उत्पन्न करना, शैक्षणिक साहित्य का आदान-प्रदान, संयुक्त परामर्श सेवाएं, अनुसंधान गतिविधियों और प्रकाशन संबंधित कार्य करना है.
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता आईआईटी खड़गपुर के प्रोफेसर अशोक कुमार गुप्ता ने पीपीटी के माध्यम से ट्रांसफॉर्मिंग एंड वेस्ट वाटर मैनेजमेंट इन इंडिया: एडवांसिंग सस्टेनेबिलिटी एंड एनर्जी एफिशिएंसी एप्रोच’ विषय पर प्रकाश डालते हुए विस्तृत व्याख्यान दिया.
आईआईटी(आईएसएम) के प्रो अंशुमाली ने कहा कि लैंड पॉलिसी सभी पॉलिसियों की जननी है, क्योंकि सभी नीतियों के क्रियान्वयन के लिए सर्वप्रथम भूमि की ही आवश्यकता होती है. आजकल सरकार भी भूमि अधिग्रहण के बदले रैयतों को काफ़ी बढ़िया मुआवज़ा दे रही है. दामोदर नद के इर्द-गिर्द विभिन्न प्रकार के औद्योगिक निकायों ने नदी तट और उसके वेटलैंड क्षेत्र पर अतिक्रमण कर उसे बर्बाद कर दिया है. इन उधोगों के कारण दामोदर की कई सहायक नदियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. दामोदर भी इससे अछूता नहीं है. हमने अपनी कारगुज़ारियों से ज़मीन और पर्यावरण का नेचर बदल दिया है.
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/ Vinod Pathak
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