नेपाल की राजधानी काठमांडू इन दिनों भारी उथल-पुथल का गवाह बन रही है। सड़कों पर हजारों युवा उतर आए हैं, जो सरकार के खिलाफ नारेबाजी और प्रदर्शन कर रहे हैं। यह आंदोलन, जिसे ‘Gen-Z रिवॉल्यूशन’ का नाम दिया गया है, अब हिंसक रूप ले चुका है। प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन के गेट पर आगजनी की, बैरिकेड तोड़े और पुलिस से भिड़ गए। नतीजा? 16 लोगों की मौत और 200 से ज्यादा लोग घायल। काठमांडू के कई इलाकों में कर्फ्यू लग चुका है और सेना सड़कों पर उतर आई है। लेकिन आखिर यह बवाल क्यों मचा? लोग इतने गुस्से में क्यों हैं? आइए, इस पूरे मामले को समझते हैं।
सोशल मीडिया बैन ने भड़काई चिंगारीनेपाल सरकार ने हाल ही में फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, व्हाट्सएप और एक्स जैसे 26 बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगा दिया। सरकार का कहना है कि ये कंपनियां नेपाल में बिना रजिस्ट्रेशन के काम कर रही थीं। सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इन कंपनियों को 28 अगस्त से एक हफ्ते का समय दिया था कि वे रजिस्ट्रेशन करवाएं, लेकिन कोई भी कंपनी इस शर्त को पूरा नहीं कर पाई। इसके बाद गुरुवार को सरकार ने इन सभी प्लेटफॉर्म्स को बैन कर दिया। इस फैसले ने खासकर युवाओं में आग लगा दी, जो इसे अपनी अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला मान रहे हैं।
भ्रष्टाचार और बेरोजगारी ने बढ़ाया गुस्सालेकिन यह आंदोलन सिर्फ सोशल मीडिया बैन तक सीमित नहीं है। युवाओं का गुस्सा सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों और बढ़ती बेरोजगारी की वजह से भी उबाल पर है। प्रदर्शनकारी छात्रों का कहना है कि सरकार न सिर्फ उनकी आवाज दबा रही है, बल्कि भ्रष्टाचार और नौकरियों की कमी जैसे मुद्दों पर भी चुप्पी साधे हुए है। 1995 के बाद जन्मे युवा, जिन्हें Gen-Z कहा जाता है, इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं। उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए एकजुट होकर सड़कों पर उतरने का ऐलान किया, और अब यह आंदोलन पूरे देश में फैल चुका है।
हिंसा और कर्फ्यू का मंजरकाठमांडू में शुरू हुआ यह प्रदर्शन अब सुनसरी और पोखरा जैसे शहरों में भी पहुंच गया है। प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन के पास पुलिस के बैरिकेड तोड़ दिए और कुछ लोग दीवार फांदकर संसद परिसर में भी घुस गए। पुलिस ने भीड़ को काबू करने के लिए आंसू गैस, पानी की बौछार और रबर की गोलियां चलाईं। कुछ जगहों पर फायरिंग भी हुई, जिसमें कम से कम 16 लोगों की जान चली गई। 200 से ज्यादा लोग घायल हैं, जिनमें से 22 की हालत गंभीर बताई जा रही है। हालात को देखते हुए काठमांडू के न्यू बानेश्वर, सिंहदरबार और अन्य संवेदनशील इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया है। कर्फ्यू का दायरा न्यू बानेश्वर चौक से एवरेस्ट होटल, बिजुली बाजार, मिन भवन और टिंकुने चौक तक फैला हुआ है।
सरकार की प्रतिक्रिया और आगे क्या?प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने हालात को नियंत्रित करने के लिए आपात कैबिनेट बैठक बुलाई है। सेना को सड़कों पर तैनात किया गया है, लेकिन प्रदर्शनकारी पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। कई प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह सिर्फ सोशल मीडिया की लड़ाई नहीं, बल्कि सरकार की तानाशाही और भ्रष्टाचार के खिलाफ बगावत है। कुछ लोग इसे नेपाल में बांग्लादेश जैसे आंदोलन की शुरुआत मान रहे हैं, जहां युवाओं ने सरकार के खिलाफ बड़ा बदलाव ला दिया था। लेकिन क्या यह आंदोलन नेपाल में कोई बड़ा बदलाव लाएगा? यह सवाल अभी अनसुलझा है।
क्या है जनता का कहना?प्रदर्शनकारियों में से एक ने कहा, “हमारी आवाज दबाने की कोशिश हो रही है। सोशल मीडिया हमारा हथियार है, और इसे छीनकर सरकार हमें चुप कराना चाहती है। लेकिन हम चुप नहीं रहेंगे।” कई युवाओं का मानना है कि सरकार का यह कदम चीन की तर्ज पर लिया गया है, जहां सोशल मीडिया पर सख्त नियंत्रण है। कुछ प्रदर्शनकारी यह भी आरोप लगा रहे हैं कि चीनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को बैन नहीं किया गया, जिससे सरकार पर सवाल उठ रहे हैं।
नेपाल में यह बवाल कितना और बढ़ेगा, यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन इतना तय है कि Gen-Z की यह बगावत आसानी से शांत होने वाली नहीं है।
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